मेरे साथी:-

Friday, January 8, 2016

गर मेरी तू होती

फना तेरे मोहब्बत पे मैं भी होता,
नजर भर प्यार से गर देख तू लेती..

ईश्क की आग में जल भी मैं जाता,
मुस्कुरा कर थोड़ा जो निहार तू लेती..

अश्कों के सागर भी बहा मैं देता,
मांग कर दिल गर जो तोड़ तू देती..

जुदाई का ये गम भी उठा मैं लेता,
जला अलख प्यार का गर दूर तू होती..

मनाने का हुनर भी सीख मैं लेता,
इक प्यार से गर मुझसे रूठ तू जाती..

सहज ही स्वतः ही तेरा मैं होता,
एक क्षण को भी गर मेरी तू होती...

-प्रदीप कुमार साहनी

Monday, December 14, 2015

मन हुँकार बैठा है

उस आईने में खुद को देख रहा है कोई,
वो सज संवर के होने शिकार बैठा है ।

इस माहौल से हैं वाकिफ तुम और हम भी,
इस उजड़े हुए बाग में ढूँढने बहार बैठा है ।

फिर कोई आके सहला रहा है दिल को,
दे देने को फिर गम कोई तैयार बैठा है ।

ये प्यार करने वाले, अब फिर दिख रहे,
वो लूटने को फिर दिल-ए-करार बैठा है ।

जो जिंदा है वो बस, सो रहा है बेखबर,
जो कत्ल हो चुका वो यूँ पुकार बैठा है ।

चुन लिए हैं हमने कुछ दोस्त ऐसे ऐसे,
जो पास मैं बुलाऊँ वो फरार बैठा है ।

अब मौत की खबर भी वो गा कर सुनाता,
लेने को भी अर्थी, देखो कहार बैठा है ।

है आस रखो जिसपे वो सपने ही दिखाता,
हर सपने तेरे लेकर वो डकार बैठा है ।

अपना जिसे समझो वो हो गया पराया,
गैर कोई आके किस्मत सँवार बैठा है ।

काम का समझकर, आगे किया जिसको,
विश्वास को लुटाकर वो बेकार बैठा है ।

हर आग को बुझाना, अंधकार को मिटाना,
अलख फिर जगाने, मन हुँकार बैठा है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Tuesday, December 8, 2015

सफर


छुक छुक करती गाड़ी,
और ये रात का सफर,
खिड़की पे टिका सर,
हवा की ठंडी ठंडी लहर ।

बाहर धुप्प अँधेरा,
जैसे वक्त गया ठहर,
कैसी है ये जगह,
है कौन सा ये शहर ।

शांत मन है स्थिर,
सुखद सी ये पहर,
साफ स्वच्छ वातावरण,
नहीं प्रदूषण का जहर ।

चंद लम्हों का शमां,
फिर, फिर वही नजर,
फिर वही भागदौड़,
फिर, फिर वही डगर ।

Tuesday, December 1, 2015

चालक जी

(सड़क सुरक्षा पर मेरी एक रचना जो कि एक आग्रह है, सभी प्रकार की गाड़ियाँ चलाने वालों से)

संयम बरत लेने से तेरा क्या जायेगा चालक जी,
उच्च गति का रौब दिखा कर क्या पायेगा चालक जी ।

गलती एक तेरी होगी पर भुगतेंगे कई और भी,
तेरा जो होगा सो होगा, तड़पेंगे कई और भी ।

देर अगर थोड़ी होगी तो क्या जायेगा चालक जी,
जान सुरक्षित रहेगी सबकी, सुख पायेगा चालक जी ।

कहीं मवेशी पार हैं करके, बच्चे इधर-उधर हैं होते,
नहीं समझ हैं इन्हें गति की, मन माफिक वे जिधर भी होते ।

तू थोड़ा गर समझ ये लेगा, पूण्य पायेगा चालक जी,
छोटे-छोटे कदमों से खुशियाँ लायेगा चालक जी ।

सड़क नियम के हर पहलू को मान अगर तू लेता है,
खुद के साथ तू कईयों के जीवन को सुरक्षा देता है ।

नियम तोड़ना शान नहीं गर समझ जायेगा चालक जी,
चक्के कितने भी गाड़ी में, संभल जायेगा चालक जी ।

Thursday, October 15, 2015

कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी

कलम उठा जब लिखने बैठा,
बाॅस का तब आ गया फोन;
बाकि सारे काम हैं पड़े,
तू नहीं तो करेगा कौन ?

भाग-दौड़ फिर शुरु हो गई,
पीछे कोई ज्यों लिए छड़ी;
शब्द अंदर ही घुट से गए,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

घर बैठ आराम से चलो,
कुछ न कुछ लिख जायेगा;
घरवाली तब पुछ ये पड़ी,
कब राशन-पानी आयेगा ?

फिर दौड़ना शुरु हुआ तब,
काम पे काम की लगी झड़ी;
जगे शब्द फिर सुप्त पड़ गए,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

काम खतम सब करके बैठा,
शब्द उमड़ते उनको नापा;
लगा सहेजने शब्दों को जब,
बिटिया बोली खेलो पापा ।

ये काम भी था ही निभाना,
रही रचना बिन रची पड़ी;
जिम्मेदारी और भाग दौड़ मे,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

देर रात अब चहुँ ओर शांति,
अब कुछ न कुछ रच ही दूँ,
निद्रा देवी तब आकर बोली,
गोद में आ सर रख भी दूँ ।

सो गया मैं, सो गई भावना,
रचनामत्कता सुन्न रही खड़ी;
आँख तरेरते शब्द हैं घूरते,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

हर दिन की है एक कहानी,
जीवन का यही किस्सा है;
अंदर का कवि अंदर ही है,
वह भाग-दौड़ का हिस्सा है ।

जिम्मेदारी के बोझ के तले,
दबी है कविता बड़ी-बड़ी;
काम सँवारता चला हूँ लेकिन,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

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