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Friday, April 27, 2012

अनंत की खोज


अनंत की खोज में भटकता ही रहा,
पंछी अकेला बस तरसता ही रहा,
दर-ब-दर, यहाँ वहाँ,
और न जाने कहाँ-कहाँ,
जो ढूंढा वो मिला ही नहीं,
जो मिला उसकी तो चाह ही नहीं थी |
अनंत तो अनंत है,
मिल जाये तो फिर अनंत कहाँ ?

Friday, April 6, 2012

विनती

पवन तनय तुम अंतर्यामी, विघ्न हरो हे सबके स्वामी |
दूर करो हर कष्ट राह के, उर में बसो संग सिय राम के ||

बल बुद्धि के आप निधाना, गावो बस तुम राम गुण-गाना |
बल विवेक प्रभु हमको देना, सब अवगुण को तुम हर लेना ||

नित भज लूँ प्रभु नाम तुम्हारा, तुम ही तो हो नाथ हमारा |
विपदा मेरी मिटाना देवा,           तत्पर हो करूँ तेरी सेवा ||

शंकर सुवन तुम हे दुख भंजन, भक्ति तेरी ज्यों पावन चन्दन |
भक्तों का तू जीवन तर दे,          भक्ति भाव से झोली भर दे ||

अंजनी सूत तुम राम के दासा, पूर्ण करो इस मन की आशा |
विनय करूँ तेरी हे हनुमाना, विनती मेरी तुम ना ठुकराना ||

सभी को महा प्रभु हनुमत जी की जयंती की बधाइयाँ |

Monday, February 13, 2012

यारों कुछ तो याद करो

कॉलेज के लिए

यारों कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
कॉलेज के जो रिश्ते हैं तुम उनको न बर्बाद करो |
यारों कुछ तो याद करो |

जगह-जगह से हम सब बन्दे PIET थे पहुंचे,
डरे-डरे से सहमे से थे, हम सब सारे बच्चे,
धीरे-धीरे हम सबका जो बना था वो याराना,
पल-पल पनपे उस पौधे को पल-पल अब आबाद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

कॉलेज में था संग-संग रहना, संग-संग पढना-लड़ना,
संग-संग हरदम मस्ती करना, संग-संग हँसना-रोना,
संग-संग गप्पे करने की वो याद अभी है ताज़ी,
संग-संग के अपनी यादों को, दिल से न आज़ाद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

अन्जाने उस जगह में भी जो प्यार मिला था सबका,
अन्जानों का साथ हुआ था अपनों जैसा पक्का,
चार वर्षों का सुखमय जीवन, चार वर्षों की यारी,
चार साल के सफ़र का अनुभव जेहन से तुम याद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

मिल-जुल के था बंकिंग करना, मिल-जुल कैंटिन जाना,
मिल-जुल के कॉलेज के वक्त पे, दूर तक घुमने जाना,
मिल-जुल के ना जाने कितने कर डाले हड़ताल थे हमने,
मिल-जुल कर जो रखी थी हमने, याद तो वो बुनियाद करो ।
यारों कुछ तो याद करो.... 

कभी-कभी वो रेल का सफर, वो कैंपस की तैयारी,
बिना टिकट वो पकड़ा जाना, निभाना अपनी यारी,
तरह-तरह के ग्रुप बना था अपना जीवन जीना,
कभी-कभी जो बीत गए तल, उनपे वाद-विवाद करो ।
यारों कुछ तो याद करो.... 

यारों कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
कॉलेज के जो रिश्ते हैं तुम उनको न बर्बाद करो |
यारों कुछ तो याद करो |

नवोदय के लिए

यारों, कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
नवोदय के रिश्तें हैं जो, उनको न बर्बाद करो |

यारों, कुछ तो याद करो |

जगह-जगह से हम सब बन्दे नवोदय थे पहुंचे,
डरे-डरे से सहमे-से थे, हम सब सारे बच्चे,
धीरे-धीरे हम सबका जो बना था वो याराना,
पल-पल पनपे उस पौधे को पल-पल अब आबाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

नवोदय में संग-संग रहना, संग-संग पढना-लड़ना,
संग-संग हरदम मस्ती करना, संग-संग हँसना-रोना,
संग-संग गप्पे करने की वो याद अभी है ताज़ी,
संग-संग के अपनी यादों को, दिल से न आज़ाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

अन्जाने उस जगह में भी जो प्यार मिला था सबका,
अन्जानों का साथ हुआ था अपनों जैसा पक्का,
चार वर्षों का सुखमय जीवन, चार वर्षों की यारी,
चार साल के सफ़र का अनुभव जेहन से तुम याद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

यारों, कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
नवोदय के रिश्तें हैं जो, उनको न बर्बाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो |

Thursday, February 9, 2012

"मेरा काव्य-पिटारा"


संग्रह मेरी रचनाओं का यह, खिलता एक बहारा,
आ करके सब देखो भाई, "मेरा काव्य-पिटारा" |

साझा सबसे कर सकता हूँ, है इसमें ये गुण सारा,
सब से विनय है आके देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

भद्रजनों का मिलता है आशीष इसके द्वारा,
भाई, बंधू, मित्रों देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मिलती यहाँ है सीख भी, है ज्ञान का एक सहारा,
आओ, देखो, राय भी दो सब, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मेरे लिए ये मंदिर-मस्जिद, ये मेरा है गुरुद्वारा,
तुम भी आओ, शौक से देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

जीवन संग अनवरत चलेगा, नदिया संग ज्यों धरा,
एक अभिन्न-सा भाग है यह, "मेरा काव्य-पिटारा" |

[ मेरी कविताओं के ब्लॉग का नया नाम- "मेरा काव्य-पिटारा" (पहले-"मेरी कविता") |
पता-http://pradip13m.blogspot.com/

जरुर आयें और अपनी राय दें | ]

Wednesday, February 8, 2012

मैं पथिक

क्यूँ चलूँ मैं ऐसे,
राहों में औरों के,
मैं पथिक,
मुझे राह अपनी,
स्वयं बनाना है ।

सुनना है सबकी,
हर बात को लेकिन,
मैं पथिक,
मेरा पथ मुझे,
स्वयं दिखाना है ।

माना कि कई लोग,
कई मार्ग से गुजरे,
उत्तम से अतिउत्तम,
रास्ते बना गए ।

सीखना है सबसे,
बढ़ना है निज पथ पे,
मैं पथिक,
दिये राह में,
स्वयं जलाना है ।

बने बनाए राह पर,
चल पड़ूँ ऐ "दीप",
संघर्ष से भागुँ,
जरुरी तो नहीं ।

टकराना है मुश्किलों से,
चलना है नए राह पे,
मैं पथिक,
पुष्प बाट में,
स्वयं बिछाना है ।

कोई-सी भी मंजिल,
चुन लूँ यूँ ही,
चल पड़ूँ मुँद नैन,
क्या ये सही है ?

नया लक्ष्य है बनाना,
बढ़ना है निरंतर,
मैं पथिक,
तीर लक्ष्य में,
स्वयं चलाना है ।

नत होने का अर्थ है,
मृत ही कहलाना,
मैं पथिक,
धैर्य आप का,
स्वयं बढ़ाना है ।

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-प्रदीप