मेरे साथी:-

Tuesday, August 30, 2011

गलती किसकी ?

समझ के भेजा था तुझे हमदर्द अपना,
दर्द जो न महसूस किये तो ये गलती किसकी ?
सोचा था दो-चार खुशियाँ हमे दोगे,
लगे अपनी खुशी समेटने तो ये गलती किसकी ?

जन-गण ने चुना कि हमारे बीच ही रहोगे,
लगे शीशमहल बनाने तो ये गलती किसकी ?
वतन के नाम पे चंद कसीदे तो पढ़ोगे,
लगे वतन को ही पढ़ाने तो ये गलती किसकी ?

तुम अगर जगते, जनता चैन से सोती,
स्वयं चीर निद्रा में खोये तो ये गलती किसकी ?
जनता यहाँ स्वामी, तुझे स्वामी ने ही भेजा,
लगे खुद को बॉस समझने तो ये गलती किसकी ?

जगी है अब जनता और दागे चाँद सवाल,
तेरे कर्मों ने ही जगाया तो ये गलती किसकी ?
मांग रही हक़ अपना और तुझे देना भी होगा,
तुने नाफ़रमानी की है तो ये गलती किसकी ?

Saturday, August 27, 2011

पूज्य दादाजी को श्रद्धांजलि


मेरे पूज्य दादाजी को १७वी पुण्य तिथि में सादर श्रद्धांजलि |

चरणों में आपके सर नवाते रहेंगे,
संस्कारों को आपके निभाते रहेंगे,
गुजारिश है आपसे, सदा कृपा बनाये रखना,
हृदय से सुमन भेंट हम चढाते रहेंगे |

करता हूँ अर्पित मैं श्रद्धांजलि आपको,
परमात्मा में विलीन रहे आत्मा आपकी;
मोक्ष हो, मोह-माया का अंश भी न हो,
नश्वर जग से सुदूर रहे जीवात्मा आपकी |

Wednesday, August 24, 2011

सुनो ऐ सरकार !!

भ्रष्टाचारियों की हुई भरमार,
त्रस्त कर गया जब भ्रष्टाचार,
अन्ना ले आये गाँधी का अवतार,
जाग गया युवाओ का संसार,
जनता चली संग करने आर या पार;
माँगे उठाई हमने असरदार,
पर मौन है बैठा मन"मौन" सरदार,
कर्महीन ये निकम्मी सरकार;
आफत में पड़े देश के गद्दार,
क्या होगा अब सोच रहे मक्कार,
लूट जो जायेगा उनका बाजार;
पर हमे है देश से सरोकार,
करते रहेंगे वार पे वार,
जब तक जनलोकपाल न ले आकार;
अहिंसा ही है हमारा आधार,
दिखायेंगे हम एकता अपार;
सुन लो ऐ सोई सरकार !
न बनो भ्रष्टाचार का पहरेदार,
मान लो माँगे और समझ लो सार |

Sunday, August 21, 2011

उम्मीद

एक उम्मीद है लगी,
एक किरण है दिखी,
नये कोंपल है लगे,
नवल कलियाँ है खिली ।
पतझड़ के बाद,
शायद आये ऋतुराज,
ह्रदय में शतत,
एक आशा है जगी ।
युवा शक्ति आज,
है उठ खड़ा हुआ,
आलोक की तलाश,
अब शुरु हो चुकी ।
बदलाव की आये बयार,
रिमझिम-सी हो फुहार,
सुखद एक परिवर्तन की,
विश्वास है जगी ;
राष्ट्र नवनिर्माण की,
एक उम्मीद है लगी ।

Friday, August 19, 2011

"छोटू"

चाय की दुकान पे,
एक बालक है रहता |
नौ-दस वर्षीय, सकुचाया हुआ-सा |

चाय पीने वालों का मुख निहारता रहता ;
पेंट भी है ढीला, गंजी भी फटेहाल |

ग्लास हाथ से छूटने का इंतज़ार करता रहता,
चाय ख़त्म होते ही झट ग्लास ले जाता,
धोकर वापस अपने मालिक को थमाता |
कभी पेंट ठीक करता,
कभी गंजी को उठाकर नाक पोंछा करता |
यही उसका कार्यक्रम, यही उसकी दिनचर्या,
बदले में शाम को मिलता, तीस या चालीस रुपैया |

एक दिन मैंने उसे बुलाया,
पास में बिठाया,
पूछा मैंने बाबू तेरा नाम क्या है?
असमंजस सा खड़ा उसने मुझे देखा,
ठठक कर बस एक ही शब्द कहा-
"छोटू"
इधर-उधर से वापस वो ग्लास समेटने लगा,
मैंने तब उसको पुनः पास बुलाया,
बोला, छोटू तुम कभी स्कूल क्यों नहीं जाते,
सीखने को मिलेगा कुछ पढ़ क्यों नहीं आते?

मालिक की तरफ देखा फिर मुझे देखकर बोला,
माँ रहती बीमार और पिता है शराबी,
काम नहीं करूंगा तो होगा बहुत खराबी;
पैसे लेकर जाता हूँ, तब खाना खाता हूँ,
बाप की प्यास मिटाने को शराब भी तो लता हूँ |
 सहज भाव से बोल के वो निकल गया,
पर नेत्र का कोना भींगा और दिल मेरा भर आया |

न जाने सरकार के कितने सारे योजना है,
पर जहाँ जरुरत है वहां तक वो कभी पंहुचा ही नहीं;
ऐसे ही कितने "छोटू" भारत में हैं बसते,
भारत हो रहा विकसित, फिर भी हम कहते |

क्या यही जनता का शासन है ?
क्या यही प्रजातंत्र है ?
क्या यही हमारी व्यवस्था है ?
क्या यही हमारा लोकतंत्र है ?

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