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Friday, November 22, 2013

वेदना

(डायरी से एक और रचना, जिसमे किसी के हृदय की वेदना को दिखाने की कोशिश की है)

अश्क ही रह गए हैं पीने के लिए,
बोझिल-सी जिंदगी है जीने के लिए,
जख्मों को देखकर गुजरे दिन-रात,
कोई हमदर्द भी नहीं जख्म सीने के लिए |

मजबूर हो गया यादें ढोने के लिए,
नाम न ले गम कम होने के लिए,
यादों को लेकर जीना-मरना भी मुश्किल,
एक तस्वीर भी नहीं लिपट के रोने के लिए |

पड़ा हूँ समय की ठोकर खाने के लिए,
कोशिश में हूँ रिश्ते निभाने के लिए,
अरमां तो है बहुत कुछ करने की मगर,
हाथ में वो लकीर नहीं शायद चाहत को पाने के लिए |

रंगहीन जीवन को रंगीन बनाने के लिए,
तमन्ना है सुख का रस भरने के लिए,
अश्कों से उबर कुछ खुशियाँ भी समेटूं,
मौका न दिया तकदीर ने कुछ करने के लिए |

कारण नहीं कुछ मौत से डरने के लिए,
कोई नहीं यहाँ वेदना हरने के लिए,
घुट-घुट कर जीने से मरना ही अच्छा,
पर जहर भी नहीं खाकर मरने के लिए |

10.04.2004

Friday, November 15, 2013

आज याद आती है

एक वक़्त ऐसा भी था,
हरेक लम्हा था मेरे आगोश में,
सूने-से आज इस पल में,
उन लम्हों की आज याद आती है |

आँखों के सामने दो आँखें थी,
थोड़ी ख़ामोशी, थोडा प्यार लिए,
रहस्य से भरी सागर जैसी,
उन आँखों की आज याद आती है |

कहने को तो दो होंठ हैं वे,
पर फूलों से भी नाजुक हैं,
कुछ न कहकर भी कहती हुई,
उन होंठों की आज याद आती है |

एक अनमोल-सा दिल भी है,
है जिसमे बस प्यार ही प्यार,
दिल में जगी है एक तमन्ना,
उस दिल की आज याद आती है |

अधखिली-सी एक मुस्कान,
होठों पे हर वक्त रहा था,
दिल में फूल बरसाने वाली,
उस मुस्कराहट की आज याद आती है |

बच्चों की सी बातें उसकी,
अल्हड़पन और प्यार भरी,
लब थिरका दे याद जो करे,
उस आवाज की आज याद आती है |

हर एक अदा दिल को छूती,
जो दुनिया से अनजान बना दे,
हर लम्हे को अनमोल बनाती,
उन अदाओं की आज याद आती है |

वो दूर है फिर भी दिल में है,
पर साथ हम थे ये यादें हैं,
ठंडक दिल को दे जाती,
उन यादों की आज याद आती है |

11.03.2008 

Wednesday, November 13, 2013

बस एक उसका साथ

ख़ुशी मिले या गम मिले,
मुश्किल चाहे हरदम मिले,
हर राह में मुझको मिल जाये,
बस एक उसका साथ |

जीवन पथ पर सिर्फ कांटें हों,
चाहे चहुँ और सन्नाटे हों,
सिर्फ एक फूल बस मिल जाये,
बस एक उसका साथ |

खतरों से भरा गलियारा हो,
चाहे बेहद अंधियारा हो,
बस एक चीज़ बस नजर आये,
बस एक उसका साथ |

हो ख़ुदा बड़ा बेदर्द बड़ा,
चाहे दे मुझको दर्द बड़ा,
बस एक दुआ बस दे जाये,
बस एक उसका साथ |

किस्मत का भी साथ न हो,
चाहे अपनों का हाथ न हो,
एक साथ बस मुझे मिले,
बस एक उसका साथ |

मंजिल भले ही दूर लगे,
चाहे बोझ भरपूर लगे,
कुछ और नहीं बस मिल जाये,
बस एक उसका साथ |

हर कष्ट यूँही सह सकता हूँ,
कुछ भी चाहे कर सकता हूँ,
बस वो मिले और मिल जाये,
बस एक उसका साथ |

01.03.2008

Saturday, November 9, 2013

तू कौन ?

(डायरी से सौन्दर्य रस की एक रचना )

बिजली गिराती हैं तेरी अदाएं,
ख़ुदा ने जो भेजा वो नूर हो तुम;
देख ही बस सकता, छूना भी मुश्किल,
पहुँच से सबकी बहुत दूर हो तुम |

आँखों में चमक, होंठों पे मुस्कान,
दिल में उमंग लिए सुरूर हो तुम;
देखकर तुझको यूँ लगता है ऐसे,
आसमान से उतरी कोई हूर हो तुम |

भोली छवि होगी, सोचा था हमने,
पर अलग छवि लिए इत्तफाक हो तुम;
कुदरत ने बनाया, कुछ ऐसा ही तुमको,
कह नहीं सकता कोई ख़ाक हो तुम |

अंदाज-ऐ-बयां तुमको कुछ ऐसा मिला,
दिल से निकली हुई आवाज हो तुम;
रहस्यों का सागर अपने दिल में लिए,
सबके लिए खुद ही एक राज हो तुम |

सरल नहीं हरदम, छेड़ना जिसको,
संगीत का ऐसा ही एक राग हो तुम;
छूने से जिसको, पिघल जाये पत्थर,
सचमुच में वो ठंडी आग हो तुम |

दिल में लिए कई मचलते अरमाँ,
जो तुम हो नहीं कोई और हो तुम;
मधुर स्वप्न लेकर आँखों में कई,
राह में बढ़ी, नया दौर हो तुम |

( कॉलेज में एक लड़की ने कहा कि बहुत कविता लिखते हो, मेरे ऊपर कोई कविता लिखो | मैंने फिर ये कविता लिखी | पर पढने के बाद लगा की कुछ ज्यादा हो गया, इसलिए उसे सुनाया नहीं और कहा कि मैं लिख नहीं पाया )

27.09.2004

Wednesday, November 6, 2013

कल्पना

(डायरी से एक और रचना, कॉलेज के शुरूआती दिनों की |)

मेरी कल्पना कल्पना ही रही शायद,
हकीकत न उसको कभी बना सका मैं;
चाहा तो बहुत इस दिल ने मगर,
कल्पना को अपने न अपना सका मैं  |

की थी कल्पना इस दिल ने कभी,
मन में कल्पना के बादल बना रहा था मैं;
कल्पना को जामा हकीकत का दूंगा,
सोच दिए ख़ुशी के जला रहा था मैं |

कल्पना ही कल्पना अपने मन में लिए,
सफ़र पर कुछ करने को निकला था मैं;
आसान नहीं है यह डगर कल्पना का,
पर आसान बनाने को निकला था मैं |

कल्पना के पथ में है दीवार आई,
किस्मत का साथ भी खोने लगा हूँ मैं;
तोडूं दीवार को उस पार मैं जाऊं,
पर कैसे मैं जाऊं, सोच खोने लगा हूँ मैं |

मैंने कल्पना की, पर ऐसी भी न की,
कि उड़कर गगन को कभी धर लूँगा मैं;
छोटी सी कल्पना पूरी करने की तमन्ना,
क्या कल्पना की कल्पना मन से हर लूँगा मैं ?

मेरी कल्पना सिर्फ एक कल्पना नहीं है,
यह कहकर खुद को ढाढस दिला सकता मैं;
साथ गर दिया परिस्थितियों ने मेरा,
हकीकत भी उसको बना सकता मैं |

09.12.2003

Monday, November 4, 2013

हाय रे किस्मत ! (हास्य कविता)

(डायरी से हास्य रस की एक रचना)

किस्मत के खेल में जाने
कितनी ही बार
मेरी आँखें चार हो गई |
सुना था प्यार
बहुत खाश है लेकिन
मेरे लिए ये बात, आम हो गई |

एक बार एक नवयौवना से
पाला पड़ गया,
आँखों में उसके प्यार नजर आया |
पीछे उसके बहुत भागा
पर वो लम्बे बालों वाला छिछोरा था
बाद में नजर आया |

एक सुंदरी बगल से गुजरी,
आँखों के इशारे से
कुछ कहती चली थी |
पीछे कुछ लोग दौड़े
पता चला वो पागलखाने से
भागी हुई पगली थी |

हसीना के हसीं अदाओं ने
एक बार मुझे
पागल कर डाला |
जब सोचा कि उसे
आई लव यू कहूँगा
कमबख्त ने अपना मंगलसूत्र दिखा ड़ाला |

मैंने जिसको दिल से चाहा
उसने कहीं और घर बसाया
पर मैंने शिकवा नहीं किया |
दिल तो तब जला
जब उसके बच्चे ने
आकर मुझे मामा कह दिया |

पसंद आई थी जो मुझे
कुछ और नहीं
सेमसंग की टीवी निकली |
समझ के बैठा था
जिसे अपनी मोहब्बत
वो किसी और की बीवी निकली |

वह रोज आती थी
मुस्कुराती थी,
फिर आहट हुआ, लगा वो आई |
वो तो आई
पर मरम्मत करने
साथ में बाप और भाई को भी लाई |

देखकर उसका रंग-रूप,
आवाज उसकी सुनने को
मैं बेताब हो चला |
वो घडी आई
उसने देखकर मुझे लब खोल
पर उसके मुंह से "भैया" निकला |

किस्मत का रोना किसे सुनाएँ
और क्या गाएं
कुछ कहा नहीं जाता है |
ऐसे-ऐसे मौके आये
कि ये दीवाना बस
हाय रे किस्मत ! कह पाता है |

15.01.2005 

Friday, November 1, 2013

एक दर्द-सा दिल में है कोई

(डायरी से एक और रचना )

होठों पे मुस्कान तो है,
पर आँखों में वो नूर नहीं;
कहने को सबकुछ है मगर,
न जोश जीने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

हंसी के स्वर भी आते तो हैं,
पर चेहरे में वो बात नहीं;
एक जाम सामने है मगर,
न होश पीने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

हर बात खाश ही होती है,
फिर भी लगता कुछ ख़ास नहीं;
मंजिल भी लगती दूर मगर,
न शौक चलने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

कहने को तो सरताज हैं हम,
पर सर पे कोई ताज नहीं;
वो शमाँ सामने है मगर,
न मजा जलने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

खुशियों का एहसास भी है,
अरसों से गम का साथ नहीं;
सपनों के पंख भी लगे मगर,
न चाह उड़ने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

अपनों का तो ये साथ भी है,
पर भरा हुआ ये हाथ नहीं;
हर तरफ अँधेरा है मगर,
न सजा डरने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

29.02.2008

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-प्रदीप