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Saturday, September 28, 2013

जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)

फटी-सी एक डायरी में,
लिख रखा है मैंने;
है पाई-पाई का तेरे,
हर जख्मों का हिसाब |

कब तूने तोड़ा दिल,
कब की थी रुसवाई;
कब हुई थी बेवफा,
हर तारीख है जनाब |

क्यों फोन का मेरे,
न दिया था जवाब,
भागती ही रही दूर,
ओढ़ नकली हिज़ाब |

पछताओगी एक दिन,
याद करोगी मुझको;
जब ढल जायेगा यौवन,
जब लगाओगी खिजाब |

वो मुस्कुराहट भी तेरी,
बेशर्मों-सी ही थी;
जब घुटनों के बल आके,
तुझे देता था गुलाब |

बस दोस्त कभी कहती,
कभी प्यार थी बनाती;
बिन पेंदी के लौटा का,
तुझे दूंगा मैं खिताब |

दुखाया है इस दिल को, 
तूने जाने कितनी बार;
आंसूं हैं दिए तूने,
मुझ गरीब को बेहिसाब |

झूठे तेरे प्रेम पत्र,
फेंक दिए हाँ मैंने;
कोई गिरा गंगा में,
कोई जा गिरा चिनाब |

कभी प्यार से की बातें,
कभी गोलियां जैसे बोली;
लहू-लुहान किया दिल को,
क्या तेरा भाई था कसाब ?

न हो तू यूँ बेताब,
तुझे मिल जायेगा जवाब;
जब छापूंगा ये किताब,
तेरे जख्मों का हिसाब |

Monday, September 23, 2013

चलो अवध का धाम

श्री राम लला


 चलो अवध का धाम
भाई रे, चलो अवध का धाम । 
चलो अवध का धाम
बंधु रे, चलो अवध का धाम ।

श्री सरयू घाट

सरयू तट पर बसा मनोरम ,
कण-कण पावन धरा यहाँ की ;
दरश मात्र सब पाप भगाता ,
है सुधा-सी हवा जहाँ की ।


दशरथ जी का राजमहल


सब सुर, देवी यहाँ विराजे ,
जहाँ जन्म लिए राम । 
भाई रे, चलो अवध का धाम । 
बन्धु  रे, चलो अवध का धाम । 


श्री कनक भवन

हनुमान की गढ़ी विशाला,
कनक भवन है दिव्य यहाँ पे ;
राम जन्म भूमि दर्शन कर लो ,
घर-घर देवालय जहाँ पे । 



तुलसी उद्यान


पहर-पहर हर बेला-बेला ,
गूंजता राम का नाम । 
भाई रे, चलो अवध का धाम । 
बन्धु रे, चलो अवध का धाम । 

श्री हनुमान गढ़ी


रामनवमी की अद्भुत मेला ,
बलि बजरंगा स्वयं पधारे ;
लखन, सिया संग राम यहाँ पे ,
झूले झूलन सावन सारे । 


बाल्मीकि भवन



भर लो मन में श्रद्धा प्रभु की,
बोलो जय सिया राम । 
भाई रे, चलो अवध का धाम । 
बन्धु रे, चलो अवध का धाम । 


अयोध्या स्टेशन


श्री राम जय राम जय जय राम !!
जय सिया राम !!!!


सभी चित्र गूगल से साभार । 

Friday, September 20, 2013

इक नई दुनिया बनाना है अभी

आज फिर से, एक नया सा, स्वप्न सजाना है अभी,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

कह दिया है, जिंदगी से, राह न मेरा देखना,
खुद ही जाके, औरों पे, खुद को लुटाना है अभी |

साख पे, बैठे परिंदे, हिल रहे हैं खौफ से,
घोंसला उनका सजा कर, डर भागना है अभी |

लग गई है, आग अब, दुनिया में देखो हर तरफ,
बाँट कर, शीत प्रेम फिर से, वो बुझाना है अभी |

जा रहा है, वह मसीहा, रूठकर हम सब से ही,
रोक कर उसका पलायन, यूँ मनाना है अभी |

दिख रहे, सोये हुए से, जाने कितने कुम्भकरण,
पीट कर के, ढोल को, उनको जगाना है अभी |

देखती, माँ भारती, आँखों में लेके, अश्रु-सा,
सोख ले, उन अश्क को, कुछ कर दिखाना है अभी |

राह को हर, कर दे रौशन, रख दूं ऐसा "दीप" मैं,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

Saturday, September 14, 2013

कस लो कमर हे हिंद वासियों !!

कस लो कमर हे हिंद वासियों, हिंदी को चमकाना है,
भारत माँ के माथे की बिंदी में इसे सजाना है । 

अब बेड़ियों से आज़ादी इसको हमें दिलाना है,
जो अधिकार मिला नहीं है, हम सबको दिलवाना है । 

हर कोने में हिन्द देश के हिंदी को पहुँचाना है,
हर हिंदी भाषी को दिल से बीड़ा ये उठाना है । 

संस्कृत की इस दिव्या सुता को जन-जन से मिलवाना है,
भारत को अपनी भाषा में, विकसित करके दिखाना है । 

कमतर नहीं किसी भाषा से, दुनिया को दिखलाना है,
अपने हर आचार, विचार, हर व्यवहार में लाना है । 

अपने दर से दिल्ली तक, सर्वत्र इसे अपनाना है,
कस लो कमर हे हिंद वासियों, हिंदी को चमकाना । 


सभी को हिंदी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं । 

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