मेरे साथी:-

Friday, November 22, 2013

वेदना

(डायरी से एक और रचना, जिसमे किसी के हृदय की वेदना को दिखाने की कोशिश की है)

अश्क ही रह गए हैं पीने के लिए,
बोझिल-सी जिंदगी है जीने के लिए,
जख्मों को देखकर गुजरे दिन-रात,
कोई हमदर्द भी नहीं जख्म सीने के लिए |

मजबूर हो गया यादें ढोने के लिए,
नाम न ले गम कम होने के लिए,
यादों को लेकर जीना-मरना भी मुश्किल,
एक तस्वीर भी नहीं लिपट के रोने के लिए |

पड़ा हूँ समय की ठोकर खाने के लिए,
कोशिश में हूँ रिश्ते निभाने के लिए,
अरमां तो है बहुत कुछ करने की मगर,
हाथ में वो लकीर नहीं शायद चाहत को पाने के लिए |

रंगहीन जीवन को रंगीन बनाने के लिए,
तमन्ना है सुख का रस भरने के लिए,
अश्कों से उबर कुछ खुशियाँ भी समेटूं,
मौका न दिया तकदीर ने कुछ करने के लिए |

कारण नहीं कुछ मौत से डरने के लिए,
कोई नहीं यहाँ वेदना हरने के लिए,
घुट-घुट कर जीने से मरना ही अच्छा,
पर जहर भी नहीं खाकर मरने के लिए |

10.04.2004

Friday, November 15, 2013

आज याद आती है

एक वक़्त ऐसा भी था,
हरेक लम्हा था मेरे आगोश में,
सूने-से आज इस पल में,
उन लम्हों की आज याद आती है |

आँखों के सामने दो आँखें थी,
थोड़ी ख़ामोशी, थोडा प्यार लिए,
रहस्य से भरी सागर जैसी,
उन आँखों की आज याद आती है |

कहने को तो दो होंठ हैं वे,
पर फूलों से भी नाजुक हैं,
कुछ न कहकर भी कहती हुई,
उन होंठों की आज याद आती है |

एक अनमोल-सा दिल भी है,
है जिसमे बस प्यार ही प्यार,
दिल में जगी है एक तमन्ना,
उस दिल की आज याद आती है |

अधखिली-सी एक मुस्कान,
होठों पे हर वक्त रहा था,
दिल में फूल बरसाने वाली,
उस मुस्कराहट की आज याद आती है |

बच्चों की सी बातें उसकी,
अल्हड़पन और प्यार भरी,
लब थिरका दे याद जो करे,
उस आवाज की आज याद आती है |

हर एक अदा दिल को छूती,
जो दुनिया से अनजान बना दे,
हर लम्हे को अनमोल बनाती,
उन अदाओं की आज याद आती है |

वो दूर है फिर भी दिल में है,
पर साथ हम थे ये यादें हैं,
ठंडक दिल को दे जाती,
उन यादों की आज याद आती है |

11.03.2008 

Wednesday, November 13, 2013

बस एक उसका साथ

ख़ुशी मिले या गम मिले,
मुश्किल चाहे हरदम मिले,
हर राह में मुझको मिल जाये,
बस एक उसका साथ |

जीवन पथ पर सिर्फ कांटें हों,
चाहे चहुँ और सन्नाटे हों,
सिर्फ एक फूल बस मिल जाये,
बस एक उसका साथ |

खतरों से भरा गलियारा हो,
चाहे बेहद अंधियारा हो,
बस एक चीज़ बस नजर आये,
बस एक उसका साथ |

हो ख़ुदा बड़ा बेदर्द बड़ा,
चाहे दे मुझको दर्द बड़ा,
बस एक दुआ बस दे जाये,
बस एक उसका साथ |

किस्मत का भी साथ न हो,
चाहे अपनों का हाथ न हो,
एक साथ बस मुझे मिले,
बस एक उसका साथ |

मंजिल भले ही दूर लगे,
चाहे बोझ भरपूर लगे,
कुछ और नहीं बस मिल जाये,
बस एक उसका साथ |

हर कष्ट यूँही सह सकता हूँ,
कुछ भी चाहे कर सकता हूँ,
बस वो मिले और मिल जाये,
बस एक उसका साथ |

01.03.2008

Saturday, November 9, 2013

तू कौन ?

(डायरी से सौन्दर्य रस की एक रचना )

बिजली गिराती हैं तेरी अदाएं,
ख़ुदा ने जो भेजा वो नूर हो तुम;
देख ही बस सकता, छूना भी मुश्किल,
पहुँच से सबकी बहुत दूर हो तुम |

आँखों में चमक, होंठों पे मुस्कान,
दिल में उमंग लिए सुरूर हो तुम;
देखकर तुझको यूँ लगता है ऐसे,
आसमान से उतरी कोई हूर हो तुम |

भोली छवि होगी, सोचा था हमने,
पर अलग छवि लिए इत्तफाक हो तुम;
कुदरत ने बनाया, कुछ ऐसा ही तुमको,
कह नहीं सकता कोई ख़ाक हो तुम |

अंदाज-ऐ-बयां तुमको कुछ ऐसा मिला,
दिल से निकली हुई आवाज हो तुम;
रहस्यों का सागर अपने दिल में लिए,
सबके लिए खुद ही एक राज हो तुम |

सरल नहीं हरदम, छेड़ना जिसको,
संगीत का ऐसा ही एक राग हो तुम;
छूने से जिसको, पिघल जाये पत्थर,
सचमुच में वो ठंडी आग हो तुम |

दिल में लिए कई मचलते अरमाँ,
जो तुम हो नहीं कोई और हो तुम;
मधुर स्वप्न लेकर आँखों में कई,
राह में बढ़ी, नया दौर हो तुम |

( कॉलेज में एक लड़की ने कहा कि बहुत कविता लिखते हो, मेरे ऊपर कोई कविता लिखो | मैंने फिर ये कविता लिखी | पर पढने के बाद लगा की कुछ ज्यादा हो गया, इसलिए उसे सुनाया नहीं और कहा कि मैं लिख नहीं पाया )

27.09.2004

Wednesday, November 6, 2013

कल्पना

(डायरी से एक और रचना, कॉलेज के शुरूआती दिनों की |)

मेरी कल्पना कल्पना ही रही शायद,
हकीकत न उसको कभी बना सका मैं;
चाहा तो बहुत इस दिल ने मगर,
कल्पना को अपने न अपना सका मैं  |

की थी कल्पना इस दिल ने कभी,
मन में कल्पना के बादल बना रहा था मैं;
कल्पना को जामा हकीकत का दूंगा,
सोच दिए ख़ुशी के जला रहा था मैं |

कल्पना ही कल्पना अपने मन में लिए,
सफ़र पर कुछ करने को निकला था मैं;
आसान नहीं है यह डगर कल्पना का,
पर आसान बनाने को निकला था मैं |

कल्पना के पथ में है दीवार आई,
किस्मत का साथ भी खोने लगा हूँ मैं;
तोडूं दीवार को उस पार मैं जाऊं,
पर कैसे मैं जाऊं, सोच खोने लगा हूँ मैं |

मैंने कल्पना की, पर ऐसी भी न की,
कि उड़कर गगन को कभी धर लूँगा मैं;
छोटी सी कल्पना पूरी करने की तमन्ना,
क्या कल्पना की कल्पना मन से हर लूँगा मैं ?

मेरी कल्पना सिर्फ एक कल्पना नहीं है,
यह कहकर खुद को ढाढस दिला सकता मैं;
साथ गर दिया परिस्थितियों ने मेरा,
हकीकत भी उसको बना सकता मैं |

09.12.2003

Monday, November 4, 2013

हाय रे किस्मत ! (हास्य कविता)

(डायरी से हास्य रस की एक रचना)

किस्मत के खेल में जाने
कितनी ही बार
मेरी आँखें चार हो गई |
सुना था प्यार
बहुत खाश है लेकिन
मेरे लिए ये बात, आम हो गई |

एक बार एक नवयौवना से
पाला पड़ गया,
आँखों में उसके प्यार नजर आया |
पीछे उसके बहुत भागा
पर वो लम्बे बालों वाला छिछोरा था
बाद में नजर आया |

एक सुंदरी बगल से गुजरी,
आँखों के इशारे से
कुछ कहती चली थी |
पीछे कुछ लोग दौड़े
पता चला वो पागलखाने से
भागी हुई पगली थी |

हसीना के हसीं अदाओं ने
एक बार मुझे
पागल कर डाला |
जब सोचा कि उसे
आई लव यू कहूँगा
कमबख्त ने अपना मंगलसूत्र दिखा ड़ाला |

मैंने जिसको दिल से चाहा
उसने कहीं और घर बसाया
पर मैंने शिकवा नहीं किया |
दिल तो तब जला
जब उसके बच्चे ने
आकर मुझे मामा कह दिया |

पसंद आई थी जो मुझे
कुछ और नहीं
सेमसंग की टीवी निकली |
समझ के बैठा था
जिसे अपनी मोहब्बत
वो किसी और की बीवी निकली |

वह रोज आती थी
मुस्कुराती थी,
फिर आहट हुआ, लगा वो आई |
वो तो आई
पर मरम्मत करने
साथ में बाप और भाई को भी लाई |

देखकर उसका रंग-रूप,
आवाज उसकी सुनने को
मैं बेताब हो चला |
वो घडी आई
उसने देखकर मुझे लब खोल
पर उसके मुंह से "भैया" निकला |

किस्मत का रोना किसे सुनाएँ
और क्या गाएं
कुछ कहा नहीं जाता है |
ऐसे-ऐसे मौके आये
कि ये दीवाना बस
हाय रे किस्मत ! कह पाता है |

15.01.2005 

Friday, November 1, 2013

एक दर्द-सा दिल में है कोई

(डायरी से एक और रचना )

होठों पे मुस्कान तो है,
पर आँखों में वो नूर नहीं;
कहने को सबकुछ है मगर,
न जोश जीने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

हंसी के स्वर भी आते तो हैं,
पर चेहरे में वो बात नहीं;
एक जाम सामने है मगर,
न होश पीने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

हर बात खाश ही होती है,
फिर भी लगता कुछ ख़ास नहीं;
मंजिल भी लगती दूर मगर,
न शौक चलने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

कहने को तो सरताज हैं हम,
पर सर पे कोई ताज नहीं;
वो शमाँ सामने है मगर,
न मजा जलने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

खुशियों का एहसास भी है,
अरसों से गम का साथ नहीं;
सपनों के पंख भी लगे मगर,
न चाह उड़ने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

अपनों का तो ये साथ भी है,
पर भरा हुआ ये हाथ नहीं;
हर तरफ अँधेरा है मगर,
न सजा डरने में है कोई |
एक दर्द-सा दिल में है कोई |

29.02.2008

Tuesday, October 29, 2013

जाऊं कहाँ ?

(डायरी से एक और रचना )

आजमा के देखे लाखों तरीके,
पर बेकरारी दिल की मिटती ही नहीं,
सुकून देने दिल को, जाऊं तो जाऊं कहाँ ?

चारो तरफ तो बस हैं, अपने ही अपने,
अपनों की भीड़ में ही खो गया हूँ शायद,
खुद को ढूंढ लाने, जाऊं तो जाऊं कहाँ ?

जिंदगी ही जब उतरे, बेवफाई पे यारों,
तो और कोई मुझसे वफ़ा क्या करे,
बेवफा जिंदगी को छोड़, जाऊं तो जाऊं कहाँ ?

लकीरें ही हाथ की अपनी नहीं है शायद,
किस्मत भी अब ठोकर लगाये तो क्या,
खोटी किस्मत के साथ, जाऊं तो जाऊं कहाँ ?

आँखों की चमक अब दिखती ही नहीं,
उमंगें भी दिल की कहीं खो गई हैं,
रौशनी की खोज में, जाऊं तो जाऊं कहाँ ?

होठों से मुस्कान कभी गई नहीं मेरी,
पर ख़ुशी भी तो कभी मिली ही नहीं,
गम लेकर दिल में, जाऊं तो जाऊं कहाँ ?

आँखों के आंसू उसके थमते नहीं है,
आंसुओं का ज्यों कोई सैलाब उमड़ा हो,
इस बाढ़ से बचकर, जाऊं तो जाऊं कहाँ ?

30.07.2005 

Friday, October 25, 2013

वरदान

(डायरी से एक और रचना आप सब से साझा कर रहा हूँ | हर पंक्तियों का पहला अक्षर मिला के किसी के लिए कुछ सन्देश भी था इसमें, स्वयं देख लें |)

माना नहीं आसान,
ए पथ जीवन के;
सीरत में प्यार ही,
सान सफ़र बनाता है |

श्वर की नेमत या,
गन ये पूजा की;
रदान ये अपार,
युगों से कहलाता है |

भेजा गया स्वर्ग से,
रिश्तों में सिरमौर ये;
न की गहराइयों में,
रम पद ये पाता है |

मेल का न ढोंग न,
रीतियों की दीवार;
जिंदगी ही बस यहाँ,
या पात्र बनाता है |

गीत-प्रीत मन का,
तेज इसमें सूर्य का;
रीति-रिवाज बस दिल का,
है प्रेम में बस जाता है |

22.02.2004 

Thursday, October 24, 2013

"आशा किरण"

आँखों की गहराइयों में, मधुर स्वप्न लेकर;
इस अँधेरी दुनिया में, चलने चला हूँ मैं |

अँधेरे मन में, आशा किरण लेकर;
कष्टों की गोद में, पलने चला हूँ मैं |

अंतर्मन की आवाज, सुनता नहीं है कोई;
सुन लिया है मैंने, समझने चला हूँ मैं |

जानता हूँ ये जीवन, संघर्ष है लेकिन;
संघर्ष से संघर्ष, करने चला हूँ मैं |

आलोक का अस्तित्व, परे हो गया है;
पूंज की पर खोज, करने चला हूँ मैं |

भगवान् की कृति, इस संसार में कोई;
इंसानियत है भी, देखने चला हूँ मैं |

देखा लिया है मैंने, करीब से फिर भी;
जीवन के सफ़र में, बढ़ने चला हूँ मैं |

चारों तरफ है देखा, बस तम का वर्चस्व;
पर आशा की किरण, लाने चला हूँ मैं |

इस अँधेरी दौड़ में, खो गया हूँ शायद;
अस्तित्व की पहचान अब, करने चला हूँ मैं |

कठिनाइयों को देख, न हुआ कभी नत मैं;
मृत पथ में प्राण, अब भरने चला हूँ मैं |

सोच मेरा ऐसा, दिवा-स्वप्न जैसा;
उसको भी साकार करने चला हूँ मैं |

चिंता सर से विन्ध, हो गया हताहत;
पर वेदना को पर, हरने चला हूँ मैं |

दिख रहे दो नयन, लिए जल की छलक;
नयनों का वो जल, सोखने चला हूँ मैं |

आँखों से प्रतिपल, अश्रु की ही धारा;
मोतियों का बहाव, रोकने चला हूँ मैं |

पड़ रही है मुझ पर, आशा भरी नजर;
निराशा न मिले, सोचने चला हूँ मैं |

प्रेम-पथ में शत-शत, कांटे बिछे पड़े;
पर राह पर उसकी, चलने चला हूँ मैं |

ये पथ है न रक्षित, न है जाना सरल;
अगम्य पथ पर अजेय, होने चला हूँ मैं |

गहराई कभी न देखी, इस दरिया की लेकिन;
चाहत में राहत की, कूदने चला हूँ मैं |

कह गए हैं लोग, मंजिल है निराशा;
मुश्किल ये वजन पर, ढोने चला हूँ मैं |

अंतर से निकली उसकी, करुण पुकार सुन;
वर्णित का वरण, करने चला हूँ मैं |

चार दिन का जीवन, चार क्षण का सुख;
ये चार पल की खुशियाँ, समेटने चला हूँ मैं |

वक़्त के ही साथ-साथ, हैं सब चल रहे;
वक़्त की रफ़्तार अब, पकड़ने चला हूँ मैं |

पथ में "प्रदीप", बहुत दूर है लेकिन;
देखकर उसको ही, छूने चला हूँ मैं |

दुःख के तरु में, सुख का एक फल;
उस फल को पाने, चढ़ने चला हूँ मैं |

थक कर न हारे, पथिक कोई पथ में;
आशा का प्रलोभन, देने चला हूँ मैं |

शिला-सी जमी हुई, मनःस्थिति सबकी;
भ्रम मैं अब सबका, तोड़ने चला हूँ मैं |

वृन्तों का है झुण्ड, छाया नहीं फिर भी;
छाँव दे वो पौधा, लगाने चला हूँ मैं |

दिक्भ्रांत होकर, मौत में हैं जीते;
सत्य मार्ग पर वापस, आने चला हूँ मैं |

अंत तक पथ में, निराश ही मिले;
आशा का न दामन, छोड़ने चला हूँ मैं |

तम का ये बदल, छंटे न या छंटे;
पर आशा की किरण, लाने चला हूँ मैं |

22.02.2004

Tuesday, October 22, 2013

दिल की हरियाली

(मेरी डायरी से- ये मेरी दूसरी कविता है जो मैंने तब लिखी थी जब मैं दसवीं कक्षा में था |)

कहने लगे कुछ भी न हुआ,
ये दिल जानता है बहुत कुछ हुआ;
न सोचा कभी था वैसा भी हुआ,
है अधर में कुछ बात ऐसा अटका हुआ |

पेड़ गिरने लगे, जल भी सूखने लगा,
हरियाली न पूछो वह तो मिट सा गया;
फूल भी अब डालों से गिरने लगे,
गिर सपनो को आहत वह करता गया |

एक ऐसा समय था जब थे वे हरे,
हरा था समां दिल भी था कुछ खिला;
ऐसा लगता था जैसे ऐसे ही रहे,
आगे का सफ़र भी मैं चलता चला |

वो मौसम था ऐसा सब थे हँसते हुए,
जरा-सा भी दुःख कहीं भाता न था;
फल भी मैं चखुंगा कुछ दिन है हुए,
ऐसा विश्वास भी था जो हिलता न था |

एक ऐसा हवा का झोंका चला,
पेड़ों से सब पत्तों को लेता चला;
गिर पेड़ों से सपना मिटटी में जा मिला,
कुछ क्षणों में समां धुंधला हो चला |

सब देखते रहे सब ख़तम हो गया,
सारी हरियाली में काला रंग चढ़ गया;
मैं गया जो उन पेड़ों के नजदीक में,
देख दुःख उनका भूल अपना गया |

मिल सकेंगे न फिर इस जग में कभी,
पेड़-पत्ते ऐसे ही जुदा हो गए;
न गलती है मेरी न उसकी सुनो,
प्राण रहते भी पत्तों सा निष्प्राण हुए |

सारे जग में हमेशा ऐसा ही हुआ,
पत्ते-पेड़ों से ऐसे ही झड़ते ही हैं;
दिल की हरियाली भी एक दिन मिटती ही है,
जो मिलते हैं एक दिन बिछड़ते भी हैं |

कथा हरियाली की ऐसे चलती ही है,
पेड़ों का ये हरा रंग भी उड़ जाता है;
परिवर्तन तो दुनिया में होता ही है,
फिर पत्तों को पा पेड़ खिल जाता है |

पेड़ों की छोड़ दो और लोगों की लो,
कोई रोता है तो कभी हँसता भी है;
पर पहला कभी कुछ जो खो जाता है,
लाख मिलने पर भी पहला मिलता न है |

20.04.1999

Friday, October 18, 2013

झारखण्ड की सैर

झारखण्ड का नक्शा
तू चल मेरे साथ, मैं तुझे झारखण्ड की सैर कराता हूँ,
भारत भूमि के एक अभिन्न अंग के बारे में बतलाता हूँ |
बिरसा मुंडा की प्रतिमा, बोकारो
ये बिरसा भगवान् की भूमि, सिद्धू-कान्हू की धरती यह,
प्रकृति की छटा है अनुपम, खनिज-सम्पदा की धरती यह |
हुंडरू जल-प्रपात, रांची
गोद में बैठी प्रकृति की, राजधानी रांची है यहाँ की,
जल-प्रपातों का यह शहर, जलवायु खुशनुमा जहाँ की |
बैद्यनाथ धाम मंदिर, देवघर
देवघर का शिवलिंग
यह देखो ये बैद्यनाथ धाम, जो देवघर भी कहलाता है,
शिव-शंकर के ज्योतिर्लिंग से पावन धाम सुहाता है |
टाटा इस्पात कारखाना का दृश्य
इस्पातों के एक शहंशाह जमशेद जी ने जो बसाया है,
ये जमशेदपुर, टाटा नगर जो विश्व पटल पर छाया है |
बोकारो इस्पात संयंत्र
इस्पातों की एक और है नगरी, बोकारो इस्पात नगर यह,
फले-फुले कई उद्योग-धंधे, भले मानुषों का शहर यह |
कोयले की खान, धनबाद
आई.एस.एम., धनबाद
देश की कोयला राजधानी चलो, नाम ही जिसका धनबाद है,
आई.एस.एम. के लिए प्रतिष्ठित, कोयला खानों से आबाद है |
माँ छिन्नमस्तिके मंदिर, रजरप्पा
देवडी मंदिर
रजरप्पा में छिन्नमस्तिके, देवडी में माँ का मंदिर साजे,
मधुबन में है जैन तीर्थालय, हरिहर धाम में शिव विराजे |
हरिहर धाम, गिरिडीह
मधुबन
दामोदर और स्वर्णरेखा नदी, झारखण्ड की पहचान है,
कई बांध और कई परियोजना, बढ़ाते हमारी शान है |
कांके डैम, रांची
कर्क रेखा हृदय से गुजरता, कई उच्च पथ से जुड़ा यह,
ग्रैंड ट्रंक है जान यहाँ की, देश के हर कोने से जुड़ा यह |
वन्यजीव अभ्यारण्य विशाल है, वन धरती हजारीबाग में,
पहाड़ियां और कई झीलें हैं, बस जाये जो दिल के बाग़ में |
मैथन डैम
तिलैया डैम
झुमरी तिलैया डैम है मोहक, तेनु, कोनार, मैथन बाँध भी,
खंडोली और चांडिल डैम भी, कांके और पंचेत बाँध भी |
चांडिल डैम
उर्वरक फैक्ट्री सिंदरी बंद, गोमिया में बारूद कारखाना,
हटिया में भारी मशीन तंत्र और कांके में है पागलखाना |

तेनुघाट डैम
पतरातू व् चन्द्रपुरा सहित यहाँ कई विद्युत् के निकाय हैं,
यहाँ की बिजली, कई जगह रोशन पर खुद ही असहाय है |
बोकारो थर्मल पॉवर स्टेशन
राजभाषा है हिंदी पर खोरठा, हो, मुंडा, संथाली भी,
बंगला, ओडिया, उर्दू भी कई रंग की यहाँ बोली भी |
टुसू पर्व का दृश्य
टुसू, कर्मा, सरहुल, सोहराय और गोबर्धन पूजे जाते हैं,
माँ मनसा व भोक्ता पूजा, हर देव-देवी यहाँ पूजे जाते हैं |
माँ मनसा
वन्य भूमि ये, देव भूमि ये, "दीप" मैं सबको समझाता हूँ,
तू चल मेरे साथ, मैं तुझे झारखण्ड की सैर कराता हूँ |


सभी चित्र गूगल से साभार 

Wednesday, October 9, 2013

मेरी चाहत

क्या हुआ जो तूने ये होंठ सिल रखे,
आँखों ने तो तेरी सब बयाँ कर दिया,
माना कि प्यार है खामोशियों से तुम्हे,
धडकनों ने शोर यहाँ वहां कर दिया । 

छुपाये रखो जज्बातों को दिल ही दिल में,
ये तो एक हसीं सी अदा है तुम्हारी,
खोले बिना लब को ये क्या किया तूने,
दिल में मेरे तूने अपना निशाँ कर दिया । 

अदब से पेश हुआ नजराना दिल का,
न स्वीकारा न ठुकराया तूने ये क्या किया,
बचती रही अक्सर तुम मुझसे लेकिन,
मेरी चाहत ने मशहूर तेरा जहाँ कर दिया ।

चुप्पी ये तेरी इकरार ही तो है ऐ "दीप",
तुझमें ही अब सबकुछ है पा लिया मैंने,
ख्वाबों की दुनिया में ले चला तुझको,
कहाँ मैं था और तूने कहाँ कर दिया । 

(आज मेरे ब्लॉग को फॉलो करने वाले भद्रजनों की संख्या 100 हो गई है । आप सबके सहयोग, स्नेह और आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत आभार । आप सब अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखे |)

Monday, October 7, 2013

सन्नाटा

मुमकिन है दो लफ्ज़ तुम भी कह दो,
लब मेरे भी थोड़े थिरक जाएँ,
पर बस इतना काफी तो नहीं है;
सन्नाटे का मंजर यहाँ कुछ और ही है,
तेरे-मेरे दो लफ्ज़ मिटा नहीं सकते,
सन्नाटे को यूँ ही हम चीर नहीं सकते;
कह दो उस से जो सुनता है तुम्हे,
वो भी कह देगा ऐसे ही किसी और को,
लाना है बदलाव अगर
या मिटाना है ये सन्नाटा अगर
तो बोलना होगा हममे से हर एक को ही,
चीर अगर देना है अँधेरे को यूँ,
"दीप" होगा जलाना हर एक को ही ।
बात अब ये सिर्फ तेरी या मेरी नहीं है,
मुद्दा है सबका, हाँ हम सबका,
हम, तुम, वो, वो और सारे वो,
मिल जुलके ही भेद पाएंगे इसे ।

Thursday, October 3, 2013

एक कड़ा संदेश

न्यायालय ने दे दिया, एक कड़ा संदेश ।
भ्रष्टाचारियों सावधान, जाग रहा है देश ।।

नौकरशाह हो या नेता, घिर रहें हैं आज |
नोट नीति से कब तक, कुचलोगे आवाज ||

भ्रष्ट कर्म किए जो तूने, नहीं छुपेगा राज |
ऊपर वाले का सोंटा, बनके गिरेगा गाज़ ||

आज नहीं तो वर्षों बाद, खो दोगे तुम आपा |
यौवन का सब किया धरा, भरेगा तेरा बुढ़ापा ||

लालच में जब आ करके, बेच दिया है जमीर |
जेल की खिचड़ी भाग्य में, कहाँ मिलेगा खीर ||

न्याय तंत्र पे जाग गया, आज पुनः विश्वास |
भ्रष्ट हो जो वो अंदर हो, आम जनता की आस ||

नाच नचाते ही रहे, सबको तुम पल-पल |
कानून तुझे नचवायेगा, आएगा वो कल ||

Saturday, September 28, 2013

जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)

फटी-सी एक डायरी में,
लिख रखा है मैंने;
है पाई-पाई का तेरे,
हर जख्मों का हिसाब |

कब तूने तोड़ा दिल,
कब की थी रुसवाई;
कब हुई थी बेवफा,
हर तारीख है जनाब |

क्यों फोन का मेरे,
न दिया था जवाब,
भागती ही रही दूर,
ओढ़ नकली हिज़ाब |

पछताओगी एक दिन,
याद करोगी मुझको;
जब ढल जायेगा यौवन,
जब लगाओगी खिजाब |

वो मुस्कुराहट भी तेरी,
बेशर्मों-सी ही थी;
जब घुटनों के बल आके,
तुझे देता था गुलाब |

बस दोस्त कभी कहती,
कभी प्यार थी बनाती;
बिन पेंदी के लौटा का,
तुझे दूंगा मैं खिताब |

दुखाया है इस दिल को, 
तूने जाने कितनी बार;
आंसूं हैं दिए तूने,
मुझ गरीब को बेहिसाब |

झूठे तेरे प्रेम पत्र,
फेंक दिए हाँ मैंने;
कोई गिरा गंगा में,
कोई जा गिरा चिनाब |

कभी प्यार से की बातें,
कभी गोलियां जैसे बोली;
लहू-लुहान किया दिल को,
क्या तेरा भाई था कसाब ?

न हो तू यूँ बेताब,
तुझे मिल जायेगा जवाब;
जब छापूंगा ये किताब,
तेरे जख्मों का हिसाब |

हिंदी में लिखिए:

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धन्यवाद ज्ञापन

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आपसे निवेदन है कि जो भी आपकी इच्छा हो आप टिप्पणी के रूप में बतायें |

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मेरे ब्लॉग पे आने के लिए आपका धन्यवाद |

-प्रदीप