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Saturday, September 29, 2012

अनाम रिश्ते

कुछ रिश्ते
धरा पर
ऐसे भी हैं,
दुष्कर होता जिनको
परिभाषित करना;
सरल नहीं जिनको
नाम दे पाना,
फिर भी वो होते
गहराइयों में दिल के,
जीवन में समाए,
भावनाओं से जुड़े,
अन्तर्मन में व्याप्त,
औरों की समझ से
बिलकुल परे,
खाश रिश्ते;
दुनिया के भीड़ से
सर्वथा अलग,
नहीं होता जिनमे
बाह्य आडंबर,
मोहताज नहीं होते
संपर्क व संवाद के,
समग्र सरस, सुखद
सानिध्य हृदय के,
हर व्यथा
हर खुशी में
उतने ही शरीक,
अदृश्य डोर के
बंधन में बंधे,
नाम की लोलुपता से
सुदूर और परे,
कशमकश से भरे
अनाम रिश्ते |

Thursday, September 27, 2012

शहीदे आजम रहा पुकार

सरदार भगत सिंह
(28 सितंबर 1907 – 23 मार्च 1931)
("शहीदे आजम" सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना )

जागो देश के वीर वासियों,
सुनो रहा कोई ललकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो,
चलो लिए जलती मशाल;
कहाँ खो गई जोश, उमंगें,
कहाँ गया लहू का उबाल ?

फिर दिखलाओ वही जुनून,
आज वक़्त की है दरकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

पराधीनता नहीं पसंद थी,
आज़ादी को जान दी हमने;
भारत माँ के लिए लड़े हम,
आन, बान और शान दी हमने |

आज देश फिर घिरा कष्ट में,
भरो दम, कर दो हुंकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

कई कुरीति, कई समस्या,
से देखो है देश घिरा;
अपने ही अपनों के दुश्मन,
नैतिक स्तर भी खूब गिरा |

ऋण चुकाओ देश का पहले,
तभी जश्न हो तभी त्योहार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

भ्रष्टाचार, महंगाई से है,
रो रहा ये देश बड़ा;
अपनों ने ही खूब रुलाया,
देख रहा तू खड़ा-खड़ा ?

पहचानों हर दुश्मन को अब,
छुपे हुए जो हैं गद्दार,
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

लोकतन्त्र अब नोटतंत्र है,
बिक रहा है आज जमीर;
देश भी कहीं बिक न जाए,
जागो रंक हो या अमीर |

चूर करो हर शिला मार्ग का,
तोड़ दो उपजी हर दीवार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

आज गुलामी खुद से ही है,
आज तोड़ना अपना दंभ;
आज अपनों से देश बचाना,
आज करो नया आरंभ |

आज देश हित लहू बहेगा,
आज उठो, हो जाओ तैयार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

-"दीप"

Wednesday, September 26, 2012

♥♥♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥♥♥


चाहो मुझे इतना कि पागल ही हो जाए हम,
हम टूट कर भी याद सिर्फ तुझे करे सनम |

रतजगों में भी मेरे अब बस तेरा ही नाम हो,
खुशियों में मेरे बस अब तेरा ही एहसान हो |

तेरे मेरे दरमियान न हो किसी दूरी का एहसास,
जब तक जियूं रहे तू मेरे दिल के आस-पास |

एक-दूजे के भूल को भी खुले दिल से माफ करें,
आओ, कि चाहत से अपने अब इंसाफ करें |

खुने-जिगर से लिख दूँ तेरी धडकनों में अपना नाम,
मोहब्बतों से भरा अपना ये रिश्ता है अनाम |

स्याही की जगह कलम में अपने लहू मैं भर दूँ,
ख्वाबों को भी अपने आज आ, तेरे नाम मैं कर दूँ |

चाहो मुझे इतना कि मैं खुद को ही भूल जाऊँ,
चाहो मुझे इतना कि तुझ बिन एक पल न रह पाऊँ |

चाहो मुझे इतना कि उसकी तपिश में जला दो,
चाहो मुझे इतना कि मेरी हर दुनिया भुला दो |

चाहो मुझे इतना कि ये पल यहीं पे रुक जाए,
चाहो मुझे इतना कि ये आसमान भी झुक जाए |

चाहो मुझे इतना कि हर तरफ तुम ही नजर आओ,
चाहो मुझे इतना कि तुम आज मुझमे समा जाओ |

चाहो मुझे इतना कि भूलूँ जो भी कोई दुःख हो,
कि गेसूओं तले तेरी कोई जन्नत -सा सुख हो |

चाहो मुझे चाहो तुम बस, मैं भी तुम्हें चाहूँ,
चाहत में तेरी मैं अब बस सब कुछ ही भुलाऊँ |

-♥♥"दीप"♥♥

Monday, September 24, 2012

बढ़ने चला हूँ

आँखों में लेके एक नूर कोई,
सपनों की दुनिया सच करने चला हूँ;

अपनों के सपनों को दिल में लेकर,

दुनिया में अपना हक करने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

राहों में बाधक हैं, मुश्किलें भी हैं,
पर खुद ही हर मुश्किल से लड़ने चला हूँ,
मार्ग में सबको बस खुशियाँ परोसता,
खुशियाँ लुटाता मैं उड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

सपनों को अपने है साकार करना,
भागती इस दुनिया में दौड़ने चला हूँ;
पर्वत, पहाड़ या मिले कोई चट्टान,
हौसले का हथौड़ा ले तोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

मौका परस्त दौर में एक जज्बा लेकर,
इंसानियत की खोज अब करने चला हूँ;
अँधियारों में अपना ही "दीप" लेकर,
हवाओं का रुख भी मोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

Friday, September 21, 2012

पढ़ना था मुझे

पढ़ना था मुझे पर पढ़ न पाई,
सपनों को अपने सच कर ना पाई;
रह गए अधूरे हर अरमान मेरे,
बदनसीबी की लकीर मेरे माथे पे छाई |

खेलने की उम्र में कमाना है पड़ा, 
झाड़ू-पोंछा हाथों से लगाना है पड़ा; 
घर-बाहर कर काम हुआ है गुज़ारा, 
इच्छाओं को अपनी खुद जलाना है पड़ा | 

एक अनाथ ने कब कभी नसीब है पाया, 
किताबों की जगह हाथों झाड़ू है आया; 
सरकारी वादे तो दफ्तरों तक हैं बस, 
कष्टों में भी अब मुसकुराना है आया | 

नियति मेरी यूं ही दर-दर है भटकना, 
झाड़ू-पोंछा, बर्तन अब मजबूरी है करना; 
हालात मेरे शायद न सुधरने हैं वाले, 
अच्छे रहन-सहन और किताबों को तरसना |

Monday, September 17, 2012

बुलाया करो

दिलो दिमाग में
यूं छाया करो,
पास कभी आओ
या बुलाया करो;
वफ़ा में जाँ
हम भी दे देंगे,
बस ठेस न दो
न रुलाया करो |

अतिशय प्रेम
बस बरसाया करो,
नैनों में अपने
छुपाया करो;
दूर कर देंगे
हर शिकवा-गिला
एक अवसर तो दो
दिल में बसाया करो |

मन को न
भरमाया करो,
प्रेमगीत नित
गुनगुनाया करो;
छू कर देखो
लफ़्ज़ों को मेरे,
धड़कनों को मेरी
तुम गाया करो |

Thursday, September 13, 2012

जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है

दर्द-ए-दिल समझ के कोई अनजान बैठा है ,
लूटने वाला यहाँ बनके महान बैठा है ,
लाश है कि हिलने का नाम नहीं ले रही ,
और जनाजों के इंतजार में शमशान बैठा है |

नाराज सा देखो ये सारा जहान बैठा है,
मिट्टी का माधो ले सबकी कमान बैठा है,
दिख रहा मुकद्दर बस खामोशियों भरा,
बादलों के इंतज़ार में आसमान बैठा है |

ज़मीरों का भी कोई खोला दुकान बैठा है,
इंसानों के कत्ले-आम को इंसान बैठा है,
चंद सिक्कों से तौले जा रहे हैं लोग अब,
सबको बनाने वाला खुद ऊपर हैरान बैठा है |

गमगीन-सा आज का हर नौजवान बैठा है,
छोड़ कर पंक्षी आज अपनी उड़ान बैठा है,
बड़ा ही रहस्यमय-सा है आज का मंजर,
उत्साह का सागर ही खुद परेशान बैठा है |

भक्त सत्य का आज खाली मकान बैठा है,
भ्रष्ट नाली का कीड़ा बना तुर्रम खान बैठा है,
जीवित लाशों केधर पे शहँशाह-सा बैठा,
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |

Tuesday, September 11, 2012

एक काम कर दूँ

सोचता हूँ मैं एक काम कर दूँ,

ये रूत ये हवा तेरे नाम कर दूँ,

हाजिर कर दूँ चाँद-तारों के तेरे कदमों में,
जुगनुओं को भी तेरा कद्रदान कर दूँ |

लाखों फूलों से तेरा हर राह भर दूँ,
ले बहारों का शमा तेरे बांह भर दूँ,
ख़ुशबुओं को समेट कर उड़ेल दूँ तुझमे,
सौंदर्य से हर रिश्ता तेरा निर्वाह कर दूँ |

जो न हुआ कभी भी वो आज कर दूँ,
तेरे लिए इस जग को भी नाराज कर दूँ,
जमाने भर की मुस्कान बांध दूँ तेरे आँचल में,
तेरे लिए नए संसार का आगाज़ कर दूँ |

ख्वाबों की दुनिया में तेरा द्वार कर दूँ,
खुशियाँ तेरी अब एक से हज़ार कर दूँ,
एक काम कर दूँ, जहां रोशन कर दूँ,
इज़हार-ए-चाह आज सरे बाज़ार कर दूँ |

Sunday, September 9, 2012

तुम्ही प्रेरणा हो

ध्याता हूँ तुझे तो,
कविता बन पड़ती है,
मानस निर्झर से,
अनायास बह पड़ती है;
तुम ही मेरा काव्य हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

निरूप से अक्षर भी,
अलौकिक शब्द बन पड़ते हैं,
निरर्थ वाक्यांश भी,
मोहक छंद सज पड़ते हैं;
तुम ही मेरी कविता हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

तेरी बस छवि मात्र,
अतिकान्त भाव दे जाती है,
अवघट सी बेरा में भी,
सरस उद्गार दे जाती है;
तुम ही मेरी रचना हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

एक तेरा स्मरण नीक,
कवि हृदय जगा जाता है,
बिम्ब तेरा अमंद वेग का,
मन में संचार करा जाता है;
तुम ही मेरी संवेदना हो,
तुम्ही प्रेरणा हो |

Wednesday, September 5, 2012

गुरु की महिमा

गुरु की महिमा क्या कहूँ,

शब्दों से न कह पाते हैं;
इत्र ज्यों तन को महकाए,
ये जीवन महका जाते हैं|

जीने का ढंग बतलाते हैं,
पाठ कई सिखला जाते हैं;
अर्थ जीवन का भी बताते,
रंग कितने हैं समझा जाते हैं |

पथ-प्रदर्शक बन जीवन में,
सत्य मार्ग दिखला जाते हैं;
लक्ष्य तक कैसे हम पहुँचे ये,
शिक्षक ही सब बतलाते हैं |

तन में जैसे प्राण हैं होते,
ज्ञान त्यों मन को दे जाते हैं;
शिक्षा का ये दान हैं देते,
अंतर शुद्धि कर जाते हैं |

आदि काल से शिक्षकगण ही,
पूर्ण विकास करवा जाते हैं;
मानव वो अपूर्ण ही होता,
गुरु के बिन जो रह जाते हैं |

ईश्वर से भी बढ़कर होता,
गुरु की महिमा बतलाते हैं;
गुरु के बिन जीवन दुष्कर है,
अर्थहीन है, समझाते हैं |

सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ |

Tuesday, September 4, 2012

उलझनें


जब भी तेरी याद आती है,
लबों पे मुस्कान थिरक जाती है,
पता नहीं वो कौन सी डोर है,
जो मुझे तुझसे बांध जाती है |


नजाने अनजाने होकर भी,
क्यों लगते हो मुझे अपनों से ?
बातें तेरी एहसास दिलाती,
रिश्ता हो अपना ज्यों जन्मों से |

पल भर का साथ भी तेरा,
दिल मे खुशियाँ बस भरता है,
पास तेरे बस आ जाने को,
ये मन क्यों तड़पा करता है ?

ये कैसा दिल का रिश्ता है,
न जाने क्या अंजाम है ?
हर वक्त क्यों याद आते हो,
इस रिश्ते का क्या नाम है ?

क्या उत्तर है मेरे प्रश्नो का,
क्यों इस कदर ये उलझने हैं ?
द्वंद में हैं अपने ही अंतर के,
क्या कभी ये प्रश्न सुलझने हैं ?

Sunday, September 2, 2012

पानी की बूंद (बाल कविता)

पानी की बूंद-बूंद अमोल है,
इसका न कोई मोल है ;
जीवन देती है इसकी हर बूंद,
यही तो सबके बोल है |

जब बारिश बन गिनती,
मन आह्लादित करती है;
तर कर देती है हर कोना,
खुशी दिल में भर देती है |

प्यास बुझाती हर एक की,
जिंदगी बनती अनेक की;
इसके बिना सब सूखा-सुखा,
बातें हैं ये बड़े नेक की |

कसम हमे अब खानी है,
हर एक बूंद बचानी है;
व्यर्थ नहीं जाने देना है,
अमृत ही यह पानी है |

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-प्रदीप