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Thursday, February 2, 2012

विडम्बना

एक तरफ बनाकर देवी,
पूजते हैं हम नारी को;
भक्ति भाव दर्शाते हैं,
बरबस सर नवाते हैं;
माँ शारदे के रूप में कभी
ज्ञान की देवी बताते हैं,
तो माँ दुर्गा के रूप में उसे,
शक्ति रूपा ठहराते हैं |

दूसरी तरफ वही नारी,
हमारी ही जुल्मो से त्रस्त है,
कुंठित सोच की शिकार है,
कहीं तेजाब का वार सहती है,
कही बलात्कार का दंश झेलती है,
कही दहेज के लिए जलाई जाती है,
कही शारीरिक यातनाएं भी पाती है;
तो कही जन्म पूर्व ही,
मौत के घाट उतारी जाती है |

एक तरफ तो दावा करते,
हैं सुरक्षित रखने का;
दूसरी तरफ वो नारी ही,
सबसे ज्यादा असुरक्षित है |

क्या अपने देवियों की रक्षा,
अपने बूते की बात नहीं ?
क्या समाज के दोहरी नीति की,
मानसिकता की ये बात नहीं ?

8 comments:

  1. गहन अभिवयक्ति......

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  2. अगर हम आप पूरा समाज इस पर विचार करे तो मानसिकता बदली जा सकती है,...

    लाजबाब प्रस्तुती .
    MY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

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  3. इस तरह की सामाजिक सोच की विडम्बना ही यही है की कोई इस तरह की सकरात्म्क सोचता रखता ही नहीं॥ सटक प्रस्तुति http://aapki-pasand.blogspot.com/2012/02/blog-post_03.html समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आप्क सवागत है

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  4. यही तो आज की विडम्बना है...बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति..

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  5. ये बस मानसिकता की बात है ... पुरुष मानसिकता है की नारी को दास बनके रखो ... इसको बदलना होगा ...

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  6. वाह बहुत खूब ...सोच सार्थक रहती हैं तो लेखिनी भी अच्छी हो जाती हैं

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  7. सार्थक एवं सुंदर अभिव्यक्ती ...

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