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Sunday, May 29, 2011

इंसान तू खुद को पहचान

पहचान उनकी होती है ऐ "दीप" जो कि महान हैं,
हम तो बस एक अदना सा इंसान हैं ।

पर हम भी किसी के दिल के बादशाह हैं,
अपनी अलग कायनात के शहंशाह हैं ।

खुश हूँ कि धरातल पर का एक इंसान हूँ,
भगवान की नियति का कद्रदान हूँ ।

जिन्दगी तो कुछ क्षणों की मेहमान है,
सफल वही जो झेलता तूफान है ।

मानव होने का मुझको गुरुर है,
परहितकारी बनूँ ये सुरुर है ।

अपनों का पेट भर लेता हर जीवित जान है,
मनुष्य वही पर अश्रु में जिसके प्राण हैं ।

हर किसी से किसी न किसी को आस है,
इसलिए हर इंसान अपने आप में खास है ।


बड़ा वो नहीं जिसके पास बहुत ज्ञान है,
महान तो वो है जिसे खुद की पहचान है ।

(शीर्षक का सुझाव-पूनम श्रीवास्तव)

7 comments:

  1. एकदम सही कहा पहचान तो महान की होती है,
    भगवान के/की नियति, शुरुर-सुरुर, खाश -खुश ये शब्द कुछ ठीकठाक नहीं लग रहे है, सुधार करिये

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  2. बिलकुल सही बात कही है इस कविता में.

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  3. जिन्दगी तो कुछ क्षणों की मेहमान है,
    सफल वही जो झेलता तूफान है
    pradeep ji bahut sarthak likh rahe ho badhai.

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. for me the best lines were
    अपनी अलग कायनात के शहंशाह हैं !!!

    so true we are kings and queens of our own world :D
    and every single one is unique !!
    Nice blog pradeep
    Keep it up !!

    ReplyDelete

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