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Sunday, May 29, 2011

इंसान तू खुद को पहचान

पहचान उनकी होती है ऐ "दीप" जो कि महान हैं,
हम तो बस एक अदना सा इंसान हैं ।

पर हम भी किसी के दिल के बादशाह हैं,
अपनी अलग कायनात के शहंशाह हैं ।

खुश हूँ कि धरातल पर का एक इंसान हूँ,
भगवान की नियति का कद्रदान हूँ ।

जिन्दगी तो कुछ क्षणों की मेहमान है,
सफल वही जो झेलता तूफान है ।

मानव होने का मुझको गुरुर है,
परहितकारी बनूँ ये सुरुर है ।

अपनों का पेट भर लेता हर जीवित जान है,
मनुष्य वही पर अश्रु में जिसके प्राण हैं ।

हर किसी से किसी न किसी को आस है,
इसलिए हर इंसान अपने आप में खास है ।


बड़ा वो नहीं जिसके पास बहुत ज्ञान है,
महान तो वो है जिसे खुद की पहचान है ।

(शीर्षक का सुझाव-पूनम श्रीवास्तव)

Friday, May 27, 2011

नेता बन जाते तो...

संसद में हंगामा हम भी खुब मचाते,
उद्घाटन समारोह में हम भी खुब जाते,
हम तो अंतर्मुखी बन घर में बैठ गए,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

भाषणबाजी में दो कदम आगे बढ़ जाते,
आरोप प्रत्यारोप हम भी खुब लगाते,
माँ ने कहा बेटा अच्छा इंसान बन,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

झुठे वादे कर मूर्ख हम भी खुब बनाते,
चुनाव जीतकर जनता के पास भी न जाते,
गुरुजी ने सिखाया था झुठ नहीं बोलना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

विदेश भ्रमण का संयोग हम भी कुछ लगाते,
बाहुबलि बन हर तरफ रौब हम जमाते,
जमीर ने कहा सदा भला काम करना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

लाल बत्ती लगा गाड़ी हम भी खुब दौड़ाते,
बड़े-बड़े अफसरों को हम भी पीट आते,
अंतर्मन ने कहा कभी दिखावा नहीं करना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

स्विस बैंक में खाता हम भी एक खुलवाते,
काली कमाई को उसमे आराम से छुपाते,
'काला धन राख समान' सीखा है हमने,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

दो-एक बार भले जेल भी हम जाते,
पैसों के बल पे अपनी ईज्जत हम बचाते,
पिताश्री ने बेटे को इंजीनियर बना दिया,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

Tuesday, May 24, 2011

हर शख्स दिल का सहारा नहीं होता

राह-ए-जिन्दगी में करोड़ों से होती है मुलाकात,
ऐ "दीप" हर शख्स दिल का सहारा नहीं होता ।
समन्दर में चाहे जिस ओर मोड़ लो कश्ती,
अफसोस! हर तरफ एक किनारा नहीं होता ।
चंद लोग हर कदम पे चलते साथ-साथ,
सब लोग के मरजी पे वश हमारा नहीं होता ।
चंद लोग ही सफर को आसाँ हैं करते,
हर कोई दिल-ए-गुलजार तुम्हारा नहीं होता ।
सफर में गर कोई छोड़ देता है हाथ,
चंद साथ के छुटने से कोई बेसहारा नहीं होता ।
निकाल लो चाहे झील से कुछ पानी,
उस पानी के लिए झील कभी बेजारा नहीं होता ।

Wednesday, May 18, 2011

भ्रष्ट पच्चीसा

                भ्रष्ट समाज का हाल मैं,       तुमको रहा सुनाय |
                भूल भयो तो भ्रात, मित्र, झापड़ दियो लगाय    ||

                ज्यों सुरसा का मुख बढे,      वैसो फैलत जाय |
                हनुमान की पूंछ सम, अंत न इसका भेन्ताय ||

देश की दुर्गत हाल भई है      | जनता-जन बेहाल भई है ||
बसते थे संत नित हितकारी | आज पनपते भ्रष्टाचारी |१|

राजनीति व नेता, अफसर    | ढूंढ़ रहे सब अपना अवसर    ||
मधुशाला में जाम ज्यों होता | व्यभिचार अब आम यूँ होता |२|

ज्यों बालक फुसलाना होता | वैसा घुस खिलाना होता        ||
एक कर्म नहीं आप ही होता | बिन पैसा सब शाप ही होता |३|

काम चाहिए अगर फटाफट    | जेब भरो तुम यहाँ झटाझट ||
बिन पैसा पानी भी न मिलता | पैसों से सरकार भी चलता |४|

जब हो सब यूँ भ्रष्टाचारी      | तब पैसों की महिमा प्यारी ||
सोकर चलती तंत्र सरकारी | गर्व करो ये राज हमारी     |५|

लोकपाल बिल है लटकाई | कई की इससे सांशत आई ||
देशभक्त बदनाम हो चलते | निजद्रोही निज शान से फलते |६|

गाँधी भी निज नेत्र भर लेते | गर देश दशा दर्शन कर लेते ||
कह जाते मैं नहीं हूँ बापू      | भला होई तुम मार दो चाकू |७|

ऐसे न था सोच हमारा      | देश चला किस राह तुम्हारा ||
यह नहीं सपनों का भारत | खो गया अपनों का भारत |८|

राज्य, देश सब एक हाल है | भ्रष्टों का यह भेड़ चाल है   ||
है हर महकमा बेसहारा      | भ्रष्ट ने सबमे सेंध है मारा |९|

फ़ैल चूका विकराल रूप है | ज्यों फैला चहुँओर धुप है      ||
जस जेठ की गर्मी होती    | तस तापस ये भ्रष्ट की नीति |१०|

जो समझे ईमान धर्म जैसा | वो मेमना श्वानों मध्य जैसा ||
सत्य मार्ग पे जो चल जाये | जग में हंसी पात्र बन जाये  |११|

सच्चों का यहाँ एक न चलता   | गश खाकर बस हाथ ही मलता ||
जो ध्रूत चतुर चालाक है बनता | उसका ही संसार फल-फूलता |१२|

अपना है यह देश निराला | चाँद लोगों ने भ्रष्ट कर डाला     ||
लोग स्वार्थी हो रहे नित   | को नहीं समझे औरों का हित |१३|

स्वार्थ ही सबको भ्रष्ट बनाता | स्वार्थ ही सब कुकर्म करता    ||
स्वार्थ है सबके जड़ में व्याप्त | स्वार्थ ख़तम हर भ्रष्ट समाप्त |१४|

महंगाई का अलग तमाशा   | बीस कमाओ खर्च पचासा ||
घर का बजट बिगड़ता जाये | चीर निद्रा में राजा धाये  |१५||

महंगाई अम्बर को छूता    | धन, साधन कुछ नहीं अछूता ||
जन-जन ही बेहाल हुआ है | दो-एक मालामाल हुआ है    |१६|

अब धन निर्धन क्या कमाए | क्या खिलाये क्या वह खाए           ||
महंगाई ने कमर है तोड़ी      | आम जन की नस-नस है मरोड़ी |१७|

सरकारी धन अधर में लटका | बीच-बिचौलों ने सब झटका ||
एक नीति न धरा पर आई     | कागज में होती है कमाई   |१८|

सरकारी हैं बहुत योजना        | सब बस अफसर के भोजना  ||
जो नित नीति के योग लगाते | स्वयं ही उसका भोग लगाते |१९|

मन मानस पर ढूंढ है छाई       | देश को खुद है उबकी आई            ||
स्वयं समाज है जाल में उलझा | राजनीति एक खेल अन-सुलझा |२०|

पढ़ ले जो यह भ्रष्ट पचीसा | निज मन नाचे मृग मरीचा   ||
भ्रष्टाचार जो मिटाने जाई        | खुद अपनी लुटिया है डूबाई |२१|

मत समझो इसे लिट्टी चोखा | दिन दुनिया का खेल अनोखा  ||
गहराई में उतर चूका यह        | रक्त-रक्त तक समा चूका यह |२२|

जम चूका है बा यह बीमारी | फ़ैल रहा बनके महामारी        ||
कहीं तो है यह भूल हमारी   | जिम्मेदारी लें हम सब सारी |२३|

जन-जन को ही बदलना होगा   | हर भारतीय को सुधरना होगा ||
सब अपना चित निर्मल कर लें | गंगा सम मन निर्मल कर लें |२४|

भ्रष्टाचार न हो नाग हमारा    | ऐसे देश जाये जाग हमारा        ||
कहे "प्रदीप" ये राग हमारा   | स्वच्छ समाज हो भाग हमारा |२५|

            सुन्दर स्वप्न देख लिया, हो भ्रष्टाचार विमुख        |
            देश हमारा यों रहे ज्यों,   गाँधी स्वप्न सन्मुख ||

चौखट

चौखट के भीतर का जीवन जीने को मजबूर थी जो,
सहमी हुई सी, दर से दबकर जीने को मजबूर थी जो |

पहले पापा के इज्ज़त को चौखट भीतर बंद रहना,
शादी बाद सासरे में चौखट का उसपे पाबंद रहना |

सपना कोई देख लेना उसके लिए गुनाह होता था,
जीवन जीने का लक्ष्य उसका बच्चे और निकाह होता था |

वो अबला अब बलशाली बन चौखट का दंभ तोड़ चुकी है,
वो नारी स्वयं अपने पक्ष में हवा के रुख को मोड़ चुकी है |

नैनों में चाहत भी होती लक्ष्य भी इनके अपने होते,
चौखट और वो चाहरदीवारी अब तो बस वे सपने होते |

कोई काम नहीं धरा में इनके बस की बात नहीं जो,
कोई बात नहीं रहा अब इनके हक की बात नहीं जो |

नीति से राजनीति तक हर क्षेत्र में इनकी साझेदारी है,
देश रक्षा से रॉकेट साईंस तक हर चीज में भागेदारी है |

चौखट के भीतर-बाहर, हर तरफ सँभाले रखा है,
अबल से सबला बनकर भी मर्यादा भी सँभाले रखा है |

हर जिम्मा अब अपना इनको खुब निभाना आता है,
घर, गाड़ी या देश हो इनको सब चलाना आता है |

पुरुषों से कंधा हैं मिलाती देश की नारी नहीं है कम,
इस आँधी को बाँध के रखले,चौखट में नहीं वो दम |

Saturday, May 14, 2011

ऊफ्फ ये गर्मी!!!

मौसम की ऱौद्रता हुआ अब बेहाल करने का सामान,
जो जितना गरीब है वो उतना परेशान।

महलों वाले जेनरेटर और ए.सी. में सोते है,
आमलोग ही बस पशीने में खुद को भींगोते हैं।

भूतल का जल कहने लगा- भई माफ करो मैं नीचे चला,
आसमान को मत देखो, ये मेघ भी मुँह फेर निकला।

नेतागण तो इस गर्मी भी हाथ सेंकते जाते है,
जनता की कमाई खाते है और उसी को रुलाते जाते है।

विद्युत का हालत वैसा है, यह भी कभी सुलहा है?
बिजली विभाग परेशान बेचारा घोटालो में उलझा है।

मौसम और सरकार की मार बस आमजन को तड़पाती है,
ऊफ्फ ये गरमी, आह ये वर्षा, हाय ये सर्दी सताती है।

Tuesday, May 10, 2011

माँ

जीवन की रेखा की भांति जिसकी महत्ता होती है,
दुनिया के इस दरश कराती, वह तो माँ ही होती है |

खुद ही सारे कष्ट सहकर भी, संतान को खुशियाँ देती है,
गुरु से गुरुकुल सब वह बनती, वह तो माँ ही होती है |

जननी और यह जन्भूमि तो स्वर्ग से बढ़कर होती है,
पर थोडा अभिमान न करती, वह तो माँ ही होती है |

"माँ" छोटा सा शब्द है लेकिन, व्याख्या विस्तृत होती है,
ममता के चादर में सुलाती, वह तो माँ ही होती है |

संतान के सुख से खुश होती, संतान के गम में रोती है,
निज जीवन निछावर करती, वह तो माँ ही होती है |

शत-शत नमन है उस  जीवट को, जो हमको जीवन देती है,
इतना देकर कुछ न चाहती, वह तो माँ ही होती है |

Monday, May 9, 2011

चल एकल

थक कर अब न बैठ तू, है दूर नहीं अब मंजिल,
हो कोई नहीं जब साथी, पथ पर चल तू एकल ।

तिमिर तम हो चहुं ओर, दीपक तू कर उज्ज्वल,
सह राही की राह न देख, पथ पर चल तू एकल ।

हिम्मत को न हार तू, धैर्य रख हो सबल,
आशावान, कर्तव्यनिष्ठ बन, पथ पर चल तू एकल ।

कष्टों से भयभीत न हो, भय कर देगा निर्बल,
सहनशील और सत्यशील हो, पथ पर चल तू एकल ।

राह अगर न दृष्य हो, गढ़ अपनी राह तू निकल,
दृढ निष्चय कर बढ़ चल, पथ पर चल तू एकल ।

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-प्रदीप