मेरे साथी:-

Friday, April 18, 2008

याद में उसके

याद में उसके जीवन मरण बन गया,
गम का चादर मेरा कफ़न बन गया;
जलती रही सांसे, सुलगते रहे अरमान,
दूर रहकर जीना अब तड़पन बन गया।

कम हुई आस जब पाने की उसको,
नस-नस का खून जैसे अगन बन गया;
गम इस काले संसार में देखो,
ठंडा हवा का झोंका गर्म पवन बन गया।

याद कर उसको छलकती हैं आँखें,
आन्हें भरते जीना अब चलन बन गया;
नाम लेकर उसका जख्मों को सीना,
अश्कों को पीना ही लगन बन गया।

यादों की दुनीया गम से भरी पड़ी,
अंत नहीं जीसका वो गगन बन गया;
एक ही तस्वीर अपने मन में लीये,
यादों में उसके मैं मगन बन गया।

पलकों पर लीये अश्कों का भार,
हर लम्हा अन्तीम चरण बन गया;
गम के आग में कुछ ऐसा तप,
तन मेरा प्राण रहीत बदन बन गया।

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