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Tuesday, September 16, 2008

एक इंजिनियर की आत्मकथा


(ये एक आम इंजिनियर के मन की उस समय की सोच है जब वो पुरी जिंदगी बिताने के बाद मरने के कगार पर होता है। वो एक मध्यम वर्गीय परिवार से होके भी एक इंजिनियर तो बन जाता है पर जिंदगी भर वो 'आम' ही रह जाता है। )

मैं एक इंजिनियर हूँ,
जिंदगी के हर एक क्षेत्र में, कभी जूनियर तो कभी सीनियर हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

बचपन से लेके आज तक,
पढ़ाई से कभी रिश्ता न गया,
किताबों और कंप्यूटर में घुसा, कहने को मैं superior हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

चार साल वो कॉलेज के,
मस्ती में ही उड़ते गए,
कंपनी दर कंपनी रगड़ता हुआ, मैं अजीब creature हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

माँ-बाप के हरेक सपने,
पुरा किया पर साथ न रहा,
सब कुछ पाकर भी खोया हुआ, बहता हुआ मैं river हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

प्यार दोस्ती भी खूब किया,
शादी-बच्चे भी संभाला है,
जिम्मेदारी से भागा नही, मैं ख़ुद अपना career हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

पैसों की तो कमी न हुई,
पर परिवार संग रह न पाया,
भाग-दौड़ में भागता हुआ, चलता हुआ मैं timer हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

हर एक रूप जिंदगी का,
देखा है मैंने करीब से,
हर कष्टों को झेला मैंने, हर प्रॉब्लम से मैं familiar हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

बुढ़ा हुआ तब पीछे देखा,
हाथ में कुछ न साथ में कुछ,
भटक-भटक के रुक सा गया, पड़ा हुआ एक furniture हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ.

मौत की घड़ी जब पास है आई,
पाने को कुछ न खोने को कुछ,
सबकी ही तरह रवाना होता, आसमान के मैं near हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ.

Friday, June 20, 2008

ऐसे हैं हम

अश्कों को यूँ ही पी लेते हैं,
ज़ख्मों को ख़ुद ही सी लेते हैं,
भुलाकर हर गम को हम तो,
जिंदगी को शान से जी लेते हैं।

गम के मौसम में भी खुश हो लेते हैं,
खुशियाँ देते हैं, गर गम हम जो लेते हैं,
जब तेरी याद दिल में दस्तक देती है,
छुप-छुप के हम थोड़ा रो लेते हैं।

जीवन-ताल में जब गोटा लगा लेते हैं,
सीप के मोती का भी पता लगा लेते हैं,
ठान जब लेते हैं हम कुछ करने का
तो अंधेरे में भी सही निशाना लगा लेते हैं |

कांटे भी दामन में भर लेते हैं,
दोस्तों से भी कभी डर लेते हैं,
जिंदगी का पता जिंदगी से पूछ,
जिंदगी को हम खुश कर लेते हैं।

बन के बादल दिलों में छा लेते हैं,
दूसरो में अपनी मंजिल पा लेतेहैं,
फूलों को देख कर खुश होते हम,
जिंदगी को गीत बना गा लेते हैं।

Wednesday, May 7, 2008

मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले

आसमान की गोद में टिमटिमाते कई तारे
सितारों के बीच एक छवि तू बनाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

हँसा था तू, बात पुरानी हो चुकी,
यादों को आगोश में ले, संग उसके झिलमिलाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

खुशी के कुछ पल कभी आए तो थे,
यादों को ही तू अपने पलकों पे सजाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

मुस्कुराने का तुमने जो वादा है किया,
भूल के हर गम तू वो वादा बस निभाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

ज़माने की चोट से आँसू भी निकलते,
पर पानी में भींग के अस्कों को छुपाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

प्यार में है मजबूर तू, माना ये हमने,
आएँगी ख़ुद बहारें, खुशी के गीत गा ले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

याद रख तू, कोई तुझसे है जुडा,
अपनी नहीं तो उसकी, तू खैर तो मनाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

खोखली सबकी खुशियाँ, फ़िर तू क्यों ग़मगीन;
मुस्कुराना है रस्म, ये रस्म भी निभाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

तड़प तेरी मुझसे अब देखी नहीं जाती,
तड़प में भी थोडी-सी खुशी तू मिलाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

कहानी सिर्फ़ तेरी नहीं, हर एक की है,
अपनी ही बात तू ख़ुद को ही सुनाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

शिकवा गर तुझको है ज़माने से कोई,
दिल ही दिल में अपनी अलग दुनिया तू बसाले,
मेरे दिल तू आज फ़िर मुस्कुरा ले।

Wednesday, April 30, 2008

बेवफा

(ये कविता उन भाइयों के लिए है जिसे प्यार के बदले में बेवफाई मिली, ये उनके दिल की आवाज को बयां कर रहा है।)

समझा था मैंने तुझे वफ़ा की देवी,
पर बेवफाई की जीवित मूरत हो तुम,
सच है की तुम बहुत ही हसीं हो,
पर दिल से बहुत बदसूरत हो तुम।

कदर अपने दिल की गवाँ ली मैंने,
प्यार किया तुमसे, सोचा मुकद्दर हो तुम;
न समझी तुमने दिल की हालत को मेरी,
नासमझ कहूँ या बिल्कुल बेकदर हो तुम।

दिल्लगी को तेरी दिल की लगी समझा,
संगदिलों की टोली में भी सिरमौर हो तुम;
अलग ही लिया तेरी इशारों का मतलब,
नासमझ हूँ मैं पर कुछ और हो तुम।

दिल टूटने से पहले ही आवाज आ गई,
बर्बाद किया, कहती हो मेरा यार हो तुम?
आग तो लगी है इस दिल में बहुत,
पर कैसे कहूँ मेरा दिलदार हो तुम।


सोचता हूँ छोड़ दूँ यूं घुट-घुट कर जीना,
पर रास्ते की सबसे बड़ी दीवार हो तुम;
जानता हूँ तू बेमुरब्बत है लेकिन, भूलूँ कैसे?
आख़िर पहला प्यार हो तुम।


हंसती हो तुम, जब जब रोता हूँ मैं,
दोस्त तो हो नहीं शायद रकीब हो तुम;
ना मिलेगा मुझसा फ़िर चाहने वाला कोई,
ठुकराया है मुझको बदनसीब हो तुम।

Monday, April 28, 2008

मैं कौन?

इंसानों की बस्ती में एक अदना-सा इंसान हूँ मैं,
सबकी तरह इस दुनिया में बस कुछ दीन का मेहमान हूँ मैं।

मस्ती ही है फितरत मेरी, हर गम से अनजान हूँ मैं,
गम लेकर हूँ खुशियाँ देता, अपनों की पहचान हूँ मैं।

नए दौर की झलक भी मुझमे, पुरखों का भी मान हूँ मैं,
सत्य-मार्ग से डिगा नहीं हूँ, ख़ुद का ही अभिमान हूँ मैं।

पत्थर को जो मोम बना दे, जलता हुआ वो आग हूँ मैं,
मानस पटल पे छ जाता हूँ, यादों का एक भाग हूँ मैं।

दलदल से होकर गुजरूं पर फंसता नहीं वो घाघ हूँ मैं,
दिख जाए कुछ दाग भले पर बिल्कुल ही बेदाग हूँ मैं।

जीवन को मैं प्रेम से तोलूं, इसके लिए गंभीर हूँ मैं,
पथ में भले निराशा मिले पर आशा के लिए धीर हूँ मैं।

साथ हो जिसका सुखद ही हरदम, वो यारों का यार हूँ मैं,
आशा टिकी है सबकी मुझ पर, कईयों का आसार हूँ मैं।

तिमिर तम को दूर हटाऊं, ज्योति दे वो दीप हूँ मैं,
भटके हुए को राह दिखाऊँ, निश्चय ही "प्रदीप" हूँ मैं।

Wednesday, April 23, 2008

हरे राम का तोता

आग, पानी से दूर ही रहो,
एक जलाती, एक डुबाती  है;
मत मोलो खतरा,
बोले, हरे राम का तोता।

डर, आलस के पास न जाओ,
एक रोकती, एक रुकवाती है;
आए खतरा तो लडो,
बोले, हरे राम का तोता।

पैसा, लड़की को समझ से झेलो,
एक भागती, एक भगाती है;
जानकारी ही बचाव,
बोले, हरे राम का तोता।

प्यार, दोस्ती को मिक्स मत करो,
एक सवांरता, एक बचाता है;
दोनों का दरकार,
बोले, हरे राम का तोता।

नशा, पढ़ाई के अंत को जानो,
एक गिराती, एक उबारती है;
नशा नहीं थोड़ा भी,
बोले, हरे राम का तोता।

गम, खुशी के भेद को समझो,
 एक रुलाती, एक हँसाती है;
मस्ती ही हो फितरत,
 बोले, हरे राम का तोता।

Tuesday, April 22, 2008

यंग इंडिया

कल तक जो था नामुमकिन,
उसको भी आसान कर दिया;
जोश और जूनून से भरी,
यह है नई यंग इंडिया।

हर रोज नई तरकीब निकाले,
हर रोज नया एक खोज करे;
शार्टकट में हर काम करने वाली,
यह है नई यंग इंडिया।

पीढियों की जिंदगी से उब सी चुकी,
लोअर लिविंग को गुड बाय कह दिया;
नयापन और नई ताजगी के साथ,
यह है नई यंग इंडिया।

जातिवाद, धर्मभेद नहीं कुछ,
हर नियम को लगभग बदल ही दिया;
अलग सोच के साथ बिल्कुल मनमौजी,
यह है नई यंग इंडिया।

अपनी सभ्यता रास न आती,
पाश्चात्य को ही अपना बना लिया;
फैशन और चकाचौंध की मारी,
यह है नई यंग इंडिया।

दोस्ती के नए तरीके और बहाने खोजती,
मोबाइल और नेट से ही सबकुछ कर लिया;
विपरीत लिंग के पीछे पागल-सी,
यह है नई यंग इंडिया।

गंभीरता नाम की अब चीज़ न कोई,
मस्ती को ही फितरत कर लिया;
क्रिकेट और फिल्मों की दीवानी,
यह है नई यंग इंडिया।

Friday, April 18, 2008

याद में उसके

याद में उसके जीवन मरण बन गया,
गम का चादर मेरा कफ़न बन गया;
जलती रही सांसे, सुलगते रहे अरमान,
दूर रहकर जीना अब तड़पन बन गया।

कम हुई आस जब पाने की उसको,
नस-नस का खून जैसे अगन बन गया;
गम इस काले संसार में देखो,
ठंडा हवा का झोंका गर्म पवन बन गया।

याद कर उसको छलकती हैं आँखें,
आन्हें भरते जीना अब चलन बन गया;
नाम लेकर उसका जख्मों को सीना,
अश्कों को पीना ही लगन बन गया।

यादों की दुनीया गम से भरी पड़ी,
अंत नहीं जीसका वो गगन बन गया;
एक ही तस्वीर अपने मन में लीये,
यादों में उसके मैं मगन बन गया।

पलकों पर लीये अश्कों का भार,
हर लम्हा अन्तीम चरण बन गया;
गम के आग में कुछ ऐसा तप,
तन मेरा प्राण रहीत बदन बन गया।

याद

एक आग सी दील मी लगती है, एक तीर जीगर में चलता है;
जब याद इसी की आती है, एक दर्द सा दील में उठता है।

सिर्फ एक झलक बस पाने को, ये नैन तरसने लगते हैं;
ये हालत उसे बताने को ये होंठ तड़पने लगते हैं।

आहट उसकी सुनने को ये कान फड़कने लगते हैं;
और सोच के उसकी बातों को ये आँख बरसने लगते हैं।

ये जाती नहीं जब आती है, बस आती है और आती है;
बेखबर करके दुनीया से, ये याद बहुत सताती है।

जब याद की बदरी छाती है, हर शमा धुंधला होता है;
हर रात ही काली होती है, जब याद कीसी की आती है।

Thursday, April 17, 2008

चल कह कोई कहानी

माईंड हो रहा बोर , जाऊँ मैं किस और;
ये रात है सुहानी, चल कह कोई कहानी।

सो जाऊँ मैं कैसे, नींद आती नहीं ऐसे,
मच्छरों की है जवानी, चल कह कोई   कहानी |

लाइफ हो गया चौपट, सुबह बोलेगा पोपट;
न जोश है न रवानी, चल कह कोई कहानी।

नेट में करूँ ओरकुट, या खाऊँ कोई बिस्कुट;
हमे होगी नहीं आसानी, चल कह कोई कहानी।

फिल्मों का है जमाना, सब गातें हैं तराना;
दुनिया बिपाशा की दीवानी, चल कह कोई कहानी।

शाहरुख़ करेगा कॉमेडी, अक्षय करेगा ट्रेजेडी;
फ़िल्म मांगेगा नहीं पानी, चल कह कोई कहानी।

सचिन ने मारा चौका, या धौनी मारेगा छक्का;
मेरे बाप का क्या जानी, चल कह कोई कहानी।

पढ़ाई पे है ध्यान नहीं, GK का कोई ज्ञान नहीं;
है हर बात याद दिलानी, चल कह कोई कहानी।

उसका नंबर उससे लो, नाम पता सब ख़ुद से लो;
लड़की आती नहीं पटानी, चल कह कोई कहानी।

फ्लर्ट करते हो लड़की से, पॉकेट खाली है कड़की से;
याद आयेगी तुझे नानी, चल कह कोई कहानी।

नाचते हो बहुत ताल में, ध्यान है केवल माल में;
एक बात भी न मानी, चल कह कोई कहानी।

मोबाइल से सिर्फ चीपके रहो, मिस कॉल करो पर छिपके रहो;
कहो, बैलेंस नही मेरी रानी, चल कह कोई कहानी।

हर किसी को है पकड़ा, ख़ुद बन गए हो बकरा;
दिमाग की बत्ती है जलानी, चल कह कोई कहानी।

खाते रहो बस खाना, FM में सुनो गाना;
मस्ती करो दिलजानी, चल कह कोई कहानी।

न बनो कभी भी बोतल, बस हँसते रहो टोटल;
स्माइल बनाओ निशानी, चल कह कोई कहानी।

Wednesday, April 16, 2008

नज़र न लग जाए कहीं

मासूम से तेरे इस चेहरे को
किसी की नज़र न लग जाए कहीं,
झुक गई तेरी ये पलकें अगर,
सुबह में ही शाम न हो जाए कहीं |

चलती हो क्यों यूं बलखा के तुम,
रास्ते भी पागल न हो जाए कहीं,
कह दो हवा से न छेड़े इन जुल्फों को,
बादल यहाँ न छा जाए कहीं |

होठों की लाली होठों में ही रहे,
छलक कर बाहर न आ जाए कहीं,
झटकों मत अपने बालों को इस तरह,
बिन मौसम बरसात न हो जाए कहीं |

हूर से हुश्न के दीदार के लिए,
आसमान भी ज़मीन पे न उतर आए कहीं,
देखकर तेरी ये अल्हड़ अठखेलियाँ
पत्थर में भी जान न आ जाए कहीं |

झील सी तेरी इन आंखों में कोई,
डूबकर ख़ुद को ही न खो जाए कहीं,
न लो मस्ती में यूं अंगदाइयां,
जमाना ये सारा न मचल जाए कहीं |

साथ में तेरी मीठी मुकुराहट के,
ज़मीन पे फूल भी न बरस जाए कहीं,
देखकर बिंदिया माथे की तेरी,
पूनम का चाँद भी न शर्मा जाए कहीं |

चांदनी सी धवल ये रंगत तेरी,
फिजा में उड़कर न बिखर जाए कहीं,
हिरणी सी तेरी इस चाल को देख,
चलना ही सब न भूल जाए कहीं |

अनमोल ये हुश्न तेरा लगता है जैसे,
बदन से भी बाहर न चू जाए कहीं,
फूलों से नाजुक है तेरा बदन,
लचक न इसमे कभी आ जाए कहीं |

मत देखो मुझे इन मस्त निगाहों से,
दिल ये मेरा बेचैन न हो जाए कहीं,
मुस्कुराया न करो यूं देखकर मुझको,
सब्र का पैमाना न छलक जाए कहीं |

आँखों का काजल गालों पे लगा लो,
ज़माने की नज़र न लग जाए कहीं,
देखा न करो ख़ुद को आईने में कभी,
ख़ुद की ही नज़र न लग जाए कहीं |

Tuesday, April 15, 2008

ये अदा

झील सी ये आँखें, दहकते ये होंठ,दीवाना मुझे क्यों किए जा रही हो;
गुमसुम न बैठो कुछ बोलो तो सही,तड़प क्यो मुझको यूं दिए जा रही हो?


बिखरी ये जुल्फें, महकता बदन,आंखों से रस दिए जा रही हो;
मुस्कुरा दो जरा, बिखरने दो मोटी,क़यामत क्यों ऐसे किए जा रही हो?


कमर ये पतली, ये तिरछी नज़र,जुबान पे क्यों बातें लिए जा रही हो;
बेताब हूँ सुनने को आवाज तेरी,लबों को ऐसे क्यों सीए जा रही हो?


भोला ये चेहरा पर तीखे नयन,जादू क्या मुझपे किए जा रही हो;
खामोश रहकर दिल ही दिल में,अरमान दिलों का लिए जा रही हो।


कोमल ये पैर, कमल सा नाजुक,पायल का भार क्यों दिए जा रही हो;
भीड़ में ख़ुद को यूं कष्ट देकर,जुल्म क्यों मुझपे किए जा रही हो |


प्यार की मूरत है ये सूरत तेरी,दूर क्यो मुझसे किए जा रही हो;
होगा क्या मेरा गर देखा न मुझको,अंदाजा नही तुम किए जा रही हो।


हुश्न है ऐसा कुछ कह नहीं सकता, अदाओं से मदहोश किए जा रही हो;
मिला है तुमको कुदरत से इतना, शृंगार क्यों उसपे किए जा रही हो ?

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-प्रदीप